लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 19

प्रेमचन्द की कहानियाँ 19

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9780
आईएसबीएन :9781613015179

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

133 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्नीसवाँ भाग


गोकुल ने कहा- घुस आने दो, मैं तुम्हारी जगह होता, तो चोरों से मिलकर चोरी करवा देता। मुझे इसी वक्त इंद्रनाथ से मिलना है। मैंने उससे आज मिलने का वचन दिया है- देखो संकोच मत करना, जो बात पूछ रहा हूँ, उसका जल्द उत्तर देना। देर होगी तो वह घबरायेगा। इंद्रनाथ को तुमसे प्रेम है, यह तुम जानती हो न?

मानी ने मुँह फेरकर कहा- यही बात कहने के लिये मुझे बुलाया था? मैं कुछ नहीं जानती।

गोकुल- खैर, यह वह जाने और तुम जानो। वह तुमसे विवाह करना चाहता है। वैदिक रीति से विवाह होगा। तुम्हें स्वीकार है?

मानी की गर्दन शर्म से झुक गयी। वह कुछ जवाब न दे सकी।

गोकुल ने ‍‍फिर कहा- दादा और अम्माँ से यह बात नहीं कही गयी, इसका कारण तुम जानती ही हो। वह तुम्हें घुड़कियाँ दे-देकर जला-जलाकर चाहे मार डालें, पर विवाह करने की सम्मति कभी नहीं देंगे। इससे उनकी नाक कट जायेगी, इसलिये अब इसका निर्णय तुम्हारे ही ऊपर है। मैं तो समझता हूँ, तुम्हें स्वीकार कर लेना चाहिए। इंद्रनाथ तुमसे प्रेम करता ही है, यों भी निष्कलंक चरित्र का आदमी और बला का दिलेर है। भय तो उसे छू ही नहीं गया। तुम्हें सुखी देखकर मुझे सच्चा आनंद होगा।

मानी के हृदय में एक वेग उठ रहा था, मगर मुँह से आवाज न निकली।

गोकुल ने अबकी खीझकर कहा- देखो मानी, यह चुप रहने का समय नहीं है। क्या सोचती हो?

मानी ने काँपते स्वर में कहा- हाँ।

गोकुल के हृदय का बोझ हल्का हो गया। मुस्कराने लगा। मानी शर्म के मारे वहाँ से भाग गयी।

शाम को गोकुल ने अपनी माँ से कहा- अम्माँ, इंद्रनाथ के घर आज कोई उत्सव है। उसकी माता अकेली घबड़ा रही थी कि कैसे सब काम होगा, मैंने कहा, मैं मानी को कल भेज दूँगा। तुम्हा‍री आज्ञा हो, तो मानी का पहुँचा दूँ। कल-परसों तक चली आयेगी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book