लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 19

प्रेमचन्द की कहानियाँ 19

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9780
आईएसबीएन :9781613015179

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

133 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्नीसवाँ भाग


मानी उसी वक्त वहाँ आ गयी, गोकुल ने उसकी ओर कनखियों से ताका। मानी लज्जा‍ से गड़ गयी। भागने का रास्ता न मिला।

माँ ने कहा- मुझसे क्या पूछते हो, वह जाय, तो ले जाओ।

गोकुल ने मानी से कहा- कपड़े पहनकर तैयार हो जाओ, तुम्हें इंद्रनाथ के घर चलना है।

मानी ने आपत्ति की- मेरा जी अच्छा नहीं है, मैं न जाऊँगी।

गोकुल की माँ ने कहा- चली क्यों नहीं जाती, क्या वहाँ कोई पहाड़ खोदना है?

मानी एक सफेद साड़ी पहनकर ताँगे पर बैठी, तो उसका हृदय काँप रहा था और बार-बार आँखों में आँसू भर आते थे। उसका हृदय बैठा जाता था, मानों नदी में डूबने जा रही हो।

ताँगा कुछ दूर निकल गया तो उसने गोकुल से कहा- भैया, मेरा जी न जाने कैसा हो रहा है। घर चलो, तुम्हारे पैर पड़ती हूँ।

गोकुल ने कहा- तू पागल है। वहाँ सब लोग तेरी राह देख रहे हैं और तू कहती है लौट चलो।

मानी- मेरा मन कहता है, कोई अनिष्ट होने वाला है।

गोकुल- और मेरा मन कहता है तू रानी बनने जा रही है।

मानी- दस-पाँच दिन ठहर क्यों नहीं जाते? कह देना, मानी बीमार है।

गोकुल- पागलों की-सी बातें न करो।

मानी- लोग कितना हँसेंगे।

गोकुल- मैं शुभ कार्य में किसी की हँसी की परवाह नहीं करता।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book