कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 19 प्रेमचन्द की कहानियाँ 19प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्नीसवाँ भाग
एक सप्ताह बीत गया पर गोकुल का कहीं पता नहीं। इंद्रनाथ को बंबई में एक जगह मिल गयी थी। वह वहाँ चला गया था। वहाँ रहने का प्रबंध करके वह अपनी माता को तार देगा और तब सास और बहू वहाँ चली जायँगी। वंशीधर को पहले संदेह हुआ कि गोकुल इंद्रनाथ के घर छिपा होगा, पर जब वहाँ पता न चला तो उन्होंने सारे शहर में खोज-पूछ शुरू की। जितने मिलने वाले, मित्र, स्नेही, संबंधी थे, सभी के घर गये, पर सब जगह से साफ जवाब पाया। दिन-भर दौड़-धूप कर शाम को घर आते, तो स्त्री को आड़े हाथों लेते- और कोसो लड़के को, पानी पी-पीकर कोसो। न जाने तुम्हें कभी बुद्धि आयेगी भी या नहीं। गयी थी चुड़ैल, जाने देती। एक बोझ सिर से टला। एक महरी रख लो, काम चल जायगा। जब वह न थी, तो घर क्या भूखों मरता था? विधवाओं के पुनर्विवाह चारों ओर तो हो रहे हैं, यह कोई अनहोनी बात नहीं है। हमारे बस की बात होती, तो विधवा-विवाह के पक्षपातियों को देश से निकाल देते, शाप देकर जला देते, लेकिन यह हमारे बस की बात नहीं। फिर तुमसे इतना भी न हो सका कि मुझसे तो पूछ लेतीं। मैं जो उचित समझता, करता। क्या तुमने समझा था, मैं दफ्तर से लौटकर आऊँगा ही नहीं, वहीं मेरी अंत्येष्टि हो जायगी। बस, लड़के पर टूट पड़ीं। अब रोओ, खूब दिल खोलकर।
संध्या हो गयी थी। वंशीधर स्त्री को फटकारें सुनाकर द्वार पर उद्वेग की दशा में टहल रहे थे। रह-रहकर मानी पर क्रोध आता था। इसी राक्षसी के कारण मेरे घर का सर्वनाश हुआ। न जाने किस बुरी साइत में आयी कि घर को मिटाकर छोड़ा। वह न आयी होती, तो आज क्यों यह बुरे दिन देखने पड़ते। कितना होनहार, कितना प्रतिभाशाली लड़का था। न जाने कहाँ गया?
एकाएक एक बुढ़िया उनके समीप आयी और बोली- बाबू साहब, यह खत लायी हूँ। ले लीजिए।
वंशीधर ने लपककर बुढ़िया के हाथ से पत्र ले लिया, उनकी छाती आशा से धक-धक करने लगी। गोकुल ने शायद यह पत्र लिखा होगा। अंधेरे में कुछ न सुझा। पूछा- कहाँ से आयी है?
बुढ़िया ने कहा- वह जो बाबू हुसनेगंज में रहते हैं, जो बंबई में नौकर हैं, उन्हीं की बहू ने भेजा है।
वंशीधर ने कमरे में जाकर लैंप जलाया और पत्र पढ़ने लगे। मानी का खत था। लिखा था-
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