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प्रेमचन्द की कहानियाँ 21

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :157
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9782
आईएसबीएन :9781613015193

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इक्कीसवाँ भाग


घर पहुंचकर नेउर ने लोटा और डोर उठाया और नहाने चला कि स्त्री ने खाट पर लेटे-लेटे कहा- इतनी देर क्यों कर दिया करते हो? आदमी काम के पीछे परान थोड़े ही देता है? जब मजूरी सब के बराबर मिलती है तो क्यों काम काम के पीछे मरते हो?

नेउर का अन्त:करण एक माधुर्य से सराबोर हो गया। उसके आत्मसमर्पण से भरे हुए प्रेम में मैं की गन्ध भी तो नहीं थी। कितनी स्नेह! और किसे उसके आराम की, उसके मरने जीने की चिन्ता है? फिर यह क्यों न अपनी बुढ़िया के लिए मरे? बोला- तू उन जनम में कोई देवी रही होगी बुढ़िया, सच।

अच्छा रहने दो यह चापलूसी। हमारे आगे अब कौन बैठा हुआ है, जिसके लिए इतनी हाय-हाय करते हो?

नेउर गज भर की छाती किये स्नान करने चला गया। लौटकर उसने मोटी-मोटी रोटियां बनायी। आलू चूल्हे में डाल दिये। उनका भुरता बनाया, फिर बुढ़िया और वह दोनों साथ खाने बैठे।

बुढ़िया- मेरी जात से तुम्हें कोई सुख न मिला। पड़े-पड़े खाती हूं और तुम्हें तंग करती हूं और इससे तो कहीं अच्छा था कि भगवान मुझे उठा लेते।'

'भगवान आयेंगे तो मैं कहूंगा पहले मुझे ले चलो। तब इस सूनी झोपड़ी में कौन रहेगा।'

'तुम न रहोगे, तो मेरी क्या दशा होगी। यह सोचकर मेरी आंखों में अंधेरा आ जाता है। मैंने कोई बड़ा पुन्न किया था। कि तुम्हें पाया था। किसी और के साथ मेरा भला क्या निबाह होता?'

ऐसे मीठे संन्तोष के लिए नेउर क्या नहीं कर डालना चाहता था।

आलसिन, लोभिन, स्वार्थिन बुढ़िया अपनी जीभ पर केवल मिठास रखकर नेउर को नचाती थी जैसे कोई शिकारी कंटिये में चारा लगाकर मछली को खिलाता है।

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