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प्रेमचन्द की कहानियाँ 21

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :157
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9782
आईएसबीएन :9781613015193

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इक्कीसवाँ भाग


पहले कौन मरे, इस विषय पर आज यह पहली ही बार बातचीत न हुई थी। इसके पहले भी कितनी ही बार यह प्रश्न उठा था और यों ही छोड़ दिया गया था, लेकिन न जाने क्यों नेउर ने अपनी डिग्री कर ली थी और उसे निश्चय था कि पहले मैं जाऊंगा। उसके पीछे भी बुढ़िया जब तक रह आराम से रहे, किसी के सामने हाथ न फैलाये, इसीलिए वह मरता रहता था, जिसमें हाथ में चार पैसे जमा हो जायें।' कठिन से कठिन काम जिसे कोई न कर सके नेउर करता दिन भर फावड़े कुदाल का काम करने के बाद रात को वह ऊख के दिनों में किसी की ऊख पेरता या खेतों की रखवाली करता, लेकिन दिन निकलते जाते थे और जो कुछ कमाता था वह भी निकला जाता था। बुढ़िया के बगैर वह जीवन.... नहीं, इसकी वह कल्पना ही न कर सकता था।

लेकिन आज की बात ने नेउर को सशंक कर दिया। जल में एक बूंद रंग की भांति यह शंका उसके मन में समा कर अतिरंजित होने लगी।

गांव में नेउर को काम की कमी न थी, पर मजूरी तो वही मिलती थी, जो अब तक मिलती आयी थी; इस मन्दी में वह मजूरी भी नहीं रह गयी थी। एकाएक गांव में एक साधु कहीं से घूमते-फिरते आ निकले और नेउर के घर के सामने ही पीपल की छांह में उनकी धूनी जल गई। गांव वालों ने अपना धन्य भाग्य समझा। बाबाजी का सेवा सत्कार करने के लिए सभी जमा हो गये। कहीं से लकड़ी आ गयी से कहीं से बिछाने को कम्बल कहीं से आटा-दाल। नेउर के पास क्या था? बाबाजी के लिए भेजन बनाने की सेवा उसने ली। चरस आ गयी, दम लगने लगा।

दो तीन दिन में ही बाबाजी की कीर्ति फैलने लगी। वह आत्मदर्शी हैं भूत भविष्य भी बात देते हैं। लोभ तो छू नहीं गया। पैसा हाथ से नहीं छूते और भोजन भी क्या करते हैं। आठ पहर में एक दो बाटियां खा लीं; लेकिन मुख दीपक की तरह दमक रहा है। कितनी मीठी बानी है! सरल हृदय नेउर बाबाजी का सबसे बड़ा भक्त था। उस पर कहीं बाबाजी की दया हो गयी तो पारस ही हो जायगा। सारा दुख दलिद्दर मिट जायगा।

भक्तजन एक-एक करके चले गये थे। खूब कड़ाके की ठंड़ पड़ रही थी केवल नेउर बैठा बाबाजी के पांव दबा रहा था।

बाबा जी ने कहा- बच्चा! संसार माया है इसमें क्यों फंसे हो?

नेउर ने नत मस्तक होकर कहा- अज्ञानी हूँ महाराज, क्या करूं? स्त्री है उसे किस पर छोडूं!

'तू समझता है तू स्त्री का पालन करता है?'

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