कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 21 प्रेमचन्द की कहानियाँ 21प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इक्कीसवाँ भाग
गांव से आध मील पर पक्की सड़क है। अच्छी आमदरफ्त है। नेउर बड़े सबेरे जाकर सड़क के किनारे एक पेड़ के नीचे बैठ जाता है। किसी से कुछ मांगता नहीं पर राहगीर कुछ न कुछ दे ही देते हैं – चबेना, अनाज, पैसे। संध्या समय वह अपनी झोपड़ी में आ जाता है, चिराग जलाता है, भोजन बनाता है, खाता है और उसी खाट पर पड़ा रहता है। उसके जीवन में जो एक संचालक शक्ति थी, वह लुप्त हो गयी है वह अब केवल जीवधारी है। कितनी गहरी मनोव्यथा है। गांव में प्लेग आया। लोग घर छोड़ छोड़कर भागने लगे नेउर को अब किसी की परवाह न थी। न किसी को उससे भय था न प्रेम। सारा गांव भाग गया। नेउर अपनी झोपड़ी से न निकला और आज भी वह उसी पेड़ के नीचे सड़क के किनारे उसी तरह मौन बैठा हुआ नजर आता है- निश्चेष्ट, निर्जीव।
7. नेकी
सावन का महीना था। रेवती रानी ने पांव में मेहंदी रचायी, मांग-चोटी संवारी और तब अपनी बूढ़ी सास ने जाकर बोली- अम्मां जी, आज भी मेला देखने जाऊँगी।
रेवती पण्डित चिन्तामणि की पत्नी थी। पण्डित जी ने सरस्वती की पूजा में ज्यादा लाभ न देखकर लक्ष्मी देवी की पूजा करनी शुरू की थी। लेन-देन का कार-बार करते थे मगर और महाजनों के विपरीत खास-खास हालतों के सिवा पच्चीस फीसदी से ज्यादा सूद लेना उचित न समझते थे।
रेवती की सास बच्चे को गोद में लिये खटोले पर बैठी थी। बहू की बात सुनकर बोली- भीग जाओगी तो बच्चे को जुकाम हो जायगा।
रेवती- नहीं अम्मां, कुछ देर न लगेगी, अभी चली आऊँगी।
रेवती के दो बच्चे थे- एक लड़का, दूसरी लड़की। लड़की अभी गोद में थी और लड़का हीरामन सातवें साल में था। रेवती ने उसे अच्छे-अच्छे कपड़े पहनाये। नजर लगने से बचाने के लिए माथे और गालों पर काजल के टीके लगा दिये, गुड़ियाँ पीटने के लिए एक अच्छी रंगीन छड़ी दे दी और अपनी सहेलियों के साथ मेला देखने चली।
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