कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 22 प्रेमचन्द की कहानियाँ 22प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बाइसवाँ भाग
निरुपमा ने यह पत्र पति को दिखाया। त्रिपाठीजी उदासीन भाव से बोले- सृष्टि-रचना महात्माओं के हाथ का काम नहीं, ईश्वर का काम है।
निरुपमा- हाँ, लेकिन महात्माओं में भी तो कुछ सिद्धि होती है।
घमंडीलाल- हाँ होती है, पर ऐसे महात्माओं के दर्शन दुर्लभ हैं।
निरुपमा- मैं तो इस महात्मा के दर्शन करूँगी।
घमंडीलाल- चली जाना।
निरुपमा- जब बाँझिनों के लड़के हुए तो मैं क्या उनसे भी गयी-गुजरी हूँ?
घमंडीलाल- कह तो दिया भाई चली जाना। यह करके भी देख लो। मुझे तो ऐसा मालूम होता है, पुत्र का मुख देखना हमारे भाग्य में ही नहीं है।
कई दिन बाद निरुपमा अपने भाई के साथ मैके गयी। तीनों पुत्रियाँ भी साथ थीं। भाभी ने उन्हें प्रेम से गले लगाकर कहा, तुम्हारे घर के आदमी बड़े निर्दयी हैं। ऐसी गुलाब के फूलों की-सी लड़कियाँ पाकर भी तकदीर को रोते हैं। ये तुम्हें भारी हों तो मुझे दे दो। जब ननद और भावज भोजन करके लेटीं तो निरुपमा ने पूछा- वह महात्मा कहाँ रहते हैं?
भावज- ऐसी जल्दी क्या है, बता दूँगी।
निरुपमा- है नगीच ही न?
भावज- बहुत नगीच। जब कहोगी, उन्हें बुला दूँगी।
निरुपमा- तो क्या तुम लोगों पर बहुत प्रसन्न हैं क्या?
भावज- दोनों वक्त यहीं भोजन करते हैं। यहीं रहते हैं।
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