कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 22 प्रेमचन्द की कहानियाँ 22प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बाइसवाँ भाग
निरुपमा- जब घर ही में वैद्य तो मरिये क्यों? आज मुझे उनके दर्शन करा देना।
भावज- भेंट क्या दोगी?
निरुपमा- मैं किस लायक हूँ?
भावज- अपनी सबसे छोटी लड़की दे देना।
निरुपमा- चलो, गाली देती हो।
भावज- अच्छा यह न सही, एक बार उन्हें प्रेमालिंगन करने देना।
निरुपमा- भाभी, मुझसे ऐसी हँसी करोगी तो मैं चली जाऊँगी।
भावज- वह महात्मा बड़े रसिया हैं।
निरुपमा- तो चूल्हे में जायँ। कोई दुष्ट होगा।
भावज- उनका आशीर्वाद तो इसी शर्त पर मिलेगा। वह और कोई भेंट स्वीकार ही नहीं करते।
निरुपमा- तुम तो यों बातें कर रही हो मानो उनकी प्रतिनिधि हो।
भावज- हाँ, वह यह सब विषय मेरे ही द्वारा तय किया करते हैं। मैं भेंट लेती हूँ। मैं ही आशीर्वाद देती हूँ, मैं ही उनके हितार्थ भोजन कर लेती हूँ।
निरुपमा- तो यह कहो कि तुमने मुझे बुलाने के लिए यह हीला निकाला है।
भावज- नहीं, उनके साथ ही तुम्हें कुछ ऐसे गुर बता दूँगी जिससे तुम अपने घर आराम से रहो।
इसके बाद दोनों सखियों में कानाफूसी होने लगी। जब भावज चुप हुई तो निरुपमा बोली- और जो कहीं फिर कन्या हुई तो?
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