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प्रेमचन्द की कहानियाँ 22

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9783
आईएसबीएन :9781613015209

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बाइसवाँ भाग


गोदावरी- तो फिर क्यों नौकरी करते हो? परमात्मा की इच्छा होगी, तो आप ही आप भोजन मिल जाएगा बीमार होते हो, तो क्यों दौड़े वैद्य के घर जाते हो? परमात्मा उन्हीं की मदद करता है, जो अपनी मदद आप करते हैं।

सेठ- बेशक करता है; लेकिन अपने घर में आग लगा देना, घर की चीजों को जला देना, ऐसे काम हैं, जिन्हें परमात्मा कभी पसंद नहीं कर सकता।

गोदावरी- तो यहाँ के लोगों को चुपचाप बैठे रहना चाहिए?

सेठ- नहीं, रोना चाहिए। इस तरह रोना चाहिए, जैसे बच्चे माता के दूध के लिए रोते हैं।

सहसा होली जली, आग की शिखाएं आसमान से बातें करने लगीं, मानों स्वाधनीता की देवी अग्नि-बस्त्र धारण किए हुए आकाश के देवताओं से गले मिलने जा रही हो।

दीनानाथ ने खिड़की बन्द कर दी, उनके लिए यह दृश्य भी असह्य था।

गोदावरी इस तरह खड़ी रही, जैसे कोई गाय कसाई के खूंटे पर खड़ी हो। उसी वक्त किसी के गाने का आवाज आयी-
‘वतन की देखिए तकदीर कब बदलती हैं’

गोदावरी के विषाद से भरे हुए ह्रदय में एक चोट लगी। उसने खिड़की खोल दी और नीचे की तरफ झाँका। होली अब भी जल रही थी और एक अंधा लड़का अपनी खँजरी बजाकर गा रहा था-
‘वतन की देखिए तकदीर कब बदलती है।’

वह खिड़की के सामने पहुंचा तो गोदावरी ने पुकारा- ओ अन्धे! खड़ा रह।

अन्धा खड़ा हो गया। गोदावरी ने सन्दूक खोला, पर उसमें उसे एक पैसा मिला। नोट और रुपये थे, मगर अन्धे फकीर को नोट या रुपये देने का सवाल ही न था पैसे अगर दो-चार मिल जाते, तो इस वक्त वह जरूर दे देती। पर वहां एक ही पैसा था, वह भी इतना घिसा हुआ कि कहार बाजार से लौटा लाया था। किसी दूकानदार ने न लिया था। अन्धे को वह पैसा देते हुए गोदावरी को शर्म आ रही थी। वह जरा देर तक पैसे को हाथ मे लिए संशय में खड़ी रही। तब अन्धे को बुलाया और पैसा दे दिया।

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