कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 22 प्रेमचन्द की कहानियाँ 22प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बाइसवाँ भाग
इस पीड़ित हृदय में कितना उत्सर्ग! क्या अब भी कोई संदेह कर सकता है कि हम किसकी आवाज हैं? (पैसा उपर उठा कर) आपमें कौन इस रत्न को खरीद सकता है?
गोदावरी के मन में जिज्ञासा हुई, क्या वह वही तो पेसा नहीं है, जो रात मैंने उसे दिया था? क्या उसने सचमुच रात को कुछ नहीं खाया?
उसने जाकर समीप से पैसे को देखा, जो मेज पर रखा दिया गया था। उसका हृदय धक् से हो गया। यह वही घिसा हुआ पैसा था।
उस अंधे की दशा, उसके त्याग का स्मरण करके गोदावरी अनुरक्त हो उठी। काँपते हुए स्वर में बोली- मुझे आप यह पैसा दे दीजिए, मैं पॉँच रूपये दूंगी।
सभापति ने कहा- एक बहन इस पैसे के दाम पांच रूपये दे रही है।
दूसरी आवाज आयी- दस रुपये।
तीसरी आवाज आयी- बीस रुपये।
गोदावरी ने इस अन्तिम व्यक्ति की ओर देखा। उसके मुख पर आत्माभिमान झलक रहा था, मानों कह रहा हो कि यहाँ कौन है, जो मेरी बराबरी कर सके! गोदावरी के मन में स्पर्द्धा का भाव जाग उठा। चाहे कुछ हो जाय, इसके हाथ में यह पैसा न जाय। समझता है, इसने बीस रुपये क्या कह दिये, सारे संसार को मोल ले लिया।
गोदावरी ने कहा- चालीस रूपये।
उस पुरुष ने तुरंत कहा- पचास रूपये।
हजारों आँखें गोदावरी की ओर उठ गयीं मानो कह रही हों, अब की आप ही हमारी लाज रखिए।
गोदावरी ने उस आदमी की ओर देखकर धमकी से मिले हुए स्वर में कहा- सौ रुपये।
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