कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 22 प्रेमचन्द की कहानियाँ 22प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बाइसवाँ भाग
धनी आदमी ने भी तुरंत कहा- एक सौ बीस रुपये।
लोगों के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। समझ गये, इसी के हाथ विजय रही। निराश आंखों से गोदावरी की ओर ताकने लगे; मगर ज्यों ही गोदावरी के मुँह से निकला डेढ़ सौ, कि चारों तरफ तालियाँ पड़ने लगीं, मानो किसी दंगल के दर्शक अपने पहलवान की विजय पर मतवाले हो गये हों।
उस आदमी ने फिर कहा- पौने दो सौ।
गोदावरी बोली- दो सौ।
फिर चारों तरफ से तालियाँ पड़ी। प्रतिद्वंद्वी ने अब मैदान से हट जाने ही में अपनी कुशल समझी।
गोदावरी विजय के गर्व पर नम्रता का पर्दा डाले हुए खड़ी थी और हजारों शुभ कामनाऍं उस पर फूलों की तरह बरस रही थीं।
जब लोगो को मालूम हुआ कि यह देवी मिस्टर सेठ की बीबी है, तो उन्हें ईर्ष्यामय आनंद के साथ उस पर दया भी आयी।
मिस्टर सेठ अभी फ्लावर शो में ही थे कि एक पुलिस के अफसर ने उन्हें यह घातक संवाद सुनाया। मिस्टर सेठ सकते में पड़ गये, मानो सारी देह सुन्न पड़ गयी हो। फिर दोनों मुट्ठियाँ बांध लीं। दांत पीसे, ओठ चबाये और उसी वक्त घर चले। उनकी मोटर-साईकिल कभी इतनी तेज न चली थी।
घर में कदम रखते ही उन्होंने चिनगारियों-भरी आँखों से देखते हुए कहा- क्या तुम मेरे मुँह में कालिख पुतवाना चाहती हो?
गोदावरी ने शांत भाव से कहा- कुछ मुंह से भी तो कहो या गालियॉँ ही दिये जाओगे? तुम्हारे मुँह में कालिख लगेगी, तो क्या मेरे मुँह में न लगेगी? तुम्हारी जड़ खुदेगी, तो मेरे लिए दूसरा कौन-सा सहारा है।
मिस्टर सेठ- सारे शहर में तूफान मचा हुआ है। तुमने मेरे लिए रुपये दिये क्यों?
गोदावरी ने उसी शांत भाव से कहा- इसलिए कि मैं उसे अपना ही रुपया समझती हूँ।
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