लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 24

प्रेमचन्द की कहानियाँ 24

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9785
आईएसबीएन :9781613015223

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

289 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौबीसवाँ भाग


बरात थी कायस्थों की। समधी थे मेरे पुराने मित्र। बरातियों में अधिकांश जान-पहचान के लोग थे। देहात में जाना था। मैंने सोचा, चलो दो-तीन दिन देहात की सैर रहेगी, चल पड़ा। लेकिन मुझे यह देखकर हैरत हुई कि बरातियों की वहां जाकर बुद्धि ही कुछ भ्रष्ट हो गई है। बात-बात पर झगड़ा-तकरार। सभी कन्यापक्ष वालों से मानो लड़ने को तैयार। यह चीज नहीं आई, वह चीज नहीं भेजी, यह आदमी है या जानवर, पानी बिना बरफ के कौन पियेगा। गधे ने बरफ भेजी भी तो दस सेर। पूछो दस सेर बरफ लेकर आंखों में लगायें या किसी देवता को चढ़ाएं! अजब चिल्ल-पों मची हुई थी। कोई किसी की न सुनता था।

समधी साहब सिर पीट रहे थे कि यहां उनके मित्रों की जितनी दुर्गति हुई, उसका उन्हें उम्र-भर खेद रहेगा। वह क्या जानते थे कि लड़कीवाले इतने गंवार हैं। गंवार क्यों, मतलबी कहिए। कहने को शिक्षित हैं, सभ्य हैं, भद्र हैं, धन भी भगवान् की दया से कम नहीं, मगर दिल के इतने छोटे। दस सेर बरफ भेजते हैं! सिगरेट की एक डिबिया भी नहीं। फंस गया और क्या। मैंने उनसे बिना सहानुभूति दिखाये कहा- सिगरेट नहीं भेजे तो कौन-सा बड़ा अनर्थ हो गया, खमीरा तम्बाकू तो दस सेर भेज दिया है, पीते क्यों नहीं घोल-घोल कर।

मेरे समधी मित्र ने विस्मय-भरी आंखों से मुझे मानो उन्हें कानों पर विश्वास न हो। ऐसी अनीति! बोले- आप भी अजीब आदमी हैं, खमीरा यहां कौन पीता है। मुद्दत हुई लोगों ने गुड़गुड़ियां और फर्शियां गुदड़ी बाजार में बेच डालीं। थोड़े-से दकियानूसी अब भी हुक्का गुड़गुड़ाते हैं लेकिन बहुत कम। यहां तो ईश्वर की कृपा से सभी नई रोशनी, नये विचार, नये जमाने के लोग हैं और कन्यावाले यह बात जानते हैं, फिर भी गिगरेट नहीं भेजी, यहां कई सज्जन आठ-दस डिबियां रोज पी जाते हैं। एक साहब तो बारह तक पहुंच जाते हैं। और चार-पांच डिबियां तो आम बात है। इतने आदमियों के बीच में पांच सौ डिबियां भी न हों तो क्या हो। और बरफ देखी आपने, जैसे दवा के लिए भेजी है। यहां इतनी बरफ घर-घर आती है। मैं तो अकेला ही दस सेर पी जाता हूं। देहातियों को कभी अकल न आएगी, पढ़ लिख कितने ही जाएं।

मैंने कहा- तो आपको अपने साथ एक गाड़ी सिगरेट और टन-भर बरफ लेते आना चाहिए था।

वह स्तम्भित हो गए- आप भंग तो नहीं खा गए?

--जी नहीं, कभी उम्र-भर नहीं खाई।

--तो फिर ऐसी ऊल-जलूल बातें क्यों करते हो?

--मैं तो सम्पूर्णत: अपने होश में हूं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book