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प्रेमचन्द की कहानियाँ 24

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9785
आईएसबीएन :9781613015223

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौबीसवाँ भाग


ईश्वरदास ने इस तरह लज्जित होकर कि जैसे उससे कोई भूल हो गयी हो कहा- मेरे घर में यह चीजें बेकार पड़ी थीं, लाकर रख दीं।

‘मैं इन टीम-टाम की चीजों का गुलाम नहीं बनना चाहती।’

ईश्वरदास ने डरते-डरते कहा- अगर आपको नागवार हो तो उठवा ले जाऊँ?

माया ने देखा कि उसकी आँखें भर आयी हैं, मजबूर होकर बोली- अब आप ले आये हैं तो रहने दीजिए। मगर आगे से कोई ऐसी चीज न लाइएगा।

एक दिन माया का नौकर न आया। माया ने आठ-नौ बजे तक उसकी राह देखी, जब अब भी वह न आया तो उसने जूठे बर्तन मांजना शुरू किया। उसे कभी अपने हाथ से चौका-बर्तन करने का संयोग न हुआ था। बार-बार अपनी हालत पर रोना आता था एक दिन वह था कि उसके घर में नौकरों की एक पलटन थी, आज उसे अपने हाथों बर्तन मांजने पड़ रहे हैं। तिलोत्तमा दौड़-दौड़ कर बड़े जोश से काम कर रही थी। उसे कोई फिक्र न थी। अपने हाथों से काम करने का, अपने को उपयोगी साबित करने का ऐसा अच्छा मौका पाकर उसकी खुशी की सीमा न रही।

इतने में ईश्वरदास आकर खड़ा हो गया और माया को बर्तन मांजते देखकर बोला- यह आप क्या कर रही हैं? रहने दीजिए, मैं अभी एक आदमी को बुलवाये लाता हूँ। आपने मुझे क्यों ने खबर दी, राम-राम, उठ आइये वहां से।

माया ने लापरवाही से कहा- कोई जरूरत नहीं, आप तकलीफ न कीजिए। मैं अभी मांजे लेती हूँ।

‘इसकी जरूरत भी क्या, मैं एक मिनट में आता हूँ।’

‘नहीं, आप किसी को न लाइए, मैं इतने बर्तन आसानी से धो लूँगी।’

‘अच्छा तो लाइए मैं भी कुछ मदद करूँ।’ यह कहकर उसने डोल उठा लिया और बाहर से पानी लेने दौड़ा। पानी लाकर उसने मंजे हुए बर्तनों को धोना शुरू किया।

माया ने उसके हाथ से बर्तन छीनने की कोशिश करके कहा- आप मुझे क्यों शर्मिन्दा करते हैं? रहने दीजिए, मैं अभी साफ़ किये डालती हूँ।

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