कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 28 प्रेमचन्द की कहानियाँ 28प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का अट्ठाइसवाँ भाग
मुंशी- लड़कों को जैसा सिखा दोगे वैसा कहेंगे।
खलील- बेटा, अभी तुमने मुझसे जो कहा था, वही फिर कह दो।
लड़का- दादा मारेंगे।
मुंशी- क्या तूने रास्ते में शक्कर फाँक ली थी।
लड़का- रोने लगा।
खलील- जी हाँ, इसने मुझसे खुद कहा, पर आपने उससे तो पूछा नहीं बनिये के सिर हो गये। यही शराफत है।
मुंशी- मुझे क्या मालूम था कि उसने रास्ते में यह शरारत की?
खलील- तो ऐसे कमजोर सबूत पर आप थाने क्योंकर चले थे? आप गँवारों को मनीआर्डर के रुपये देते हैं तो उस रुपये पर दो आने अपनी दस्तूरी काट लेते हैं। टके के पोस्टकार्ड आने में बेचते हैं, जब कहिए तब साबित कर दूँ। उसे क्या आप बेईमानी नहीं समझते हैं?
मुंशी जी ने बौड़म के मुँह लगना मुनासिब न समझा। लड़के को मारते हुए घर ले गये। बनिये ने बौड़म को खूब आशीर्वाद दिया। दर्शक लोग भी धीरे-धीरे चले गये। तब मैंने खलील से कहा आपने इस बनिये की जान बचा ली नहीं तो बेचारा बेगुनाह पुलिस के पंजे में फँस जाता।
खलील- आप जानते हैं कि मुझे क्या सिला (इनाम) मिलेगा। थानेदार मेरे दुश्मन हो जायेंगे। कहेंगे यह मेरे शिकारों को भगा दिया करता है। वालिद साहब पुलिस से थर-थर काँपते हैं। मुझे हाथों लेंगे कि तू दूसरों के बीच में क्यों दखल देता है? यहाँ यह भी बौड़मपन में दाखिल है। एक बनिये के पीछे मुझे भले आदमियों की कलई खोलनी मुनासिब न थी। ऐसी हरकत बौड़म लोग किया करते हैं।
मैंने श्रद्धापूर्ण शब्दों में कहा- अब मैं आपको इसी नाम से पुकारूँगा। आज मुझे मालूम हुआ कि बौड़म देवताओं को कहा जाता है! जो स्वार्थ पर आत्मा की भेंट कर देता है वह चतुर है, बुद्धिमान है। जो आत्मा के सामने, सच्चे सिद्धांत के सामने, सत्य के सामने, स्वार्थ की, निंदा की परवाह नहीं करता वह बौड़म है, निर्बुद्धि है।
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