कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 30 प्रेमचन्द की कहानियाँ 30प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तीसवाँ भाग
मोटेराम ने सरोष होकर कहा- तुम्हारी यह कल्पना मिथ्या है। आगरे के मोतीचूर और दिल्ली के हलुवा-सोहन के सामने जौनपुर की अमिरतियों की तो गणना ही नहीं है।
चिंता.- प्रमाण से सिद्ध कीजिए?
मोटेराम- प्रत्यक्ष के लिए प्रमाण?
चिंता.- यह तुम्हारी मूर्खता है।
मोटेराम- तुम जन्म-भर खाते ही रहे, किंतु खाना न आया।
इस पर चिंतामणि ने अपनी आसनी मोटेराम पर चलायी। शास्त्रीजी ने वार खाली दिया और चिंतामणि की ओर मस्त हाथी के समान झपटे; किंतु उपस्थित सज्जनों ने दोनों महात्माओं को अलग-अलग कर दिया।
4. मनोवृत्ति
एक सुन्दर युवती, प्रातःकाल गाँधी पार्क में बिल्लौर के बेंच पर गहरी नींद में सोयी पायी जाय, यह चौंका देनेवाली बात है। सुन्दरियाँ पार्कों में हवा खाने आती हैं, हँसती हैं, दौड़ती हैं, फूल-पौधों से खेलती हैं, किसी का इधर ध्यान नहीं जाता, लेकिन कोई युवती रविश के किनारेवाले बेंच पर बेखबर सोये, वह बिल्कुल गैरमामूली बात है, अपनी ओर बलपूर्वक आकर्षित करनेवाली।
रविश पर कितने आदमी चहलकदमी कर रहे हैं, बूढ़े भी, जवान भी, सभी एक क्षण के लिए वहीं ठिठक जाते हैं, एक नज़र वह दृश्य देखते हैं और तब चले जाते हैं। युवक-वृन्द रहस्य-भाव से मुस्काते हुए, वृद्ध-जन चिन्ताभाव से सिर हिलाते हुए और युवतियाँ लज्जा में आँखें नीची किये हुए।
वसंत और हाशिम निकर और बनियान पहनें नंगे पाँव दौड़कर रहे हैं। बड़े दिन की छुट्टियों में ओलिम्पियन रेस होनेवाले हैं, दोनों उसी की तैयारी कर रहे है। दोनों इस स्थल पर पहुँचकर रुक जाते हैं और दबी आँखों से युवती को देखकर आपस में ख्याल दौड़ाने लगते हैं।
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