कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 30 प्रेमचन्द की कहानियाँ 30प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तीसवाँ भाग
वसंत ने कहा- इसे और कहीं सोने की जगह न मिली।
हाशिम ने जवाब दिया- कोई वेश्या है।
'लेकिन वेश्याएँ भी तो इस तरह बेशर्मी नहीं करती।'
'वेश्या अगर बेशर्म न हो, तो वह वेश्या नहीं।'
'बहुत-सी ऐसी बातें हैं, जिनमें कुलवधू और वेश्या, दोनों एक व्यवहार करती हैं। कोई वेश्या मामूली तौर पर सड़क पर सोना नहीं चाहती।'
'रूप-छवि दिखाने का नया आर्ट है।'
'आर्ट का सबसे सुन्दर रूप छिपाव है, दिखाव नहीं। वेश्या इस रहस्य को खूब समझती हैं।'
'उसका छिपाव केवल आकर्षण बढ़ाने के लिए है।'
'हो सकता है, मगर केवल यहाँ सो जाना, यह प्रमाणित नहीं करता कि यह वेश्या है। इसकी माँग में सिन्दूर है।'
'वेश्याएँ अवसर पड़ने पर सौभाग्यवती बन जाती हैं। रात भर प्याले के दौर चले होंगे। काम-क्रीड़ाएँ हुई होंगी। अवसाद के कारण, ठंडक पाकर सो गयी होगी।'
'मुझे तो कुल-वधु-सी लगती है।'
'कुल-वधु पार्क में सोने आयेगी?'
'हो सकता है, घर से रूठकर आयी हो।'
'चलकर पूछ ही क्यों न लें।'
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