कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 31 प्रेमचन्द की कहानियाँ 31प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इकतीसवाँ भाग
ललिता को इस बात की जरा भी चेतना न थी कि वह उस व्यक्ति के सामने खड़ी है जो एक जमाना हुआ मर चुका, वर्ना शायद वह चीखकर भागती। उस पर एक सपने की-सी हालत छायी हुई थी, मगर जब नानकचनद ने उसे सीने से लगाकर कहा ‘ललिता, अब तुमको अकेले न रहना पड़ेगा, तुम्हें इन आँखों की पुतली बनाकर रखूँगा। मैं इसीलिए तुम्हारे पास आया हूँ। मैं अब तक नरक में था, अब तुम्हारे साथ स्वर्ग को सुख भोगूँगा।’ तो ललिता चौंकी और छिटककर अलग हटती हुई बोली- आँखों को तो यकीन आ गया मगर दिल को नहीं आता। ईश्वर करे यह सपना न हो!
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