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प्रेमचन्द की कहानियाँ 33

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :100
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9794
आईएसबीएन :9781613015315

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तैंतीसवाँ भाग


सहसा एक आदमी ने कहा, 'पुलिस आ रही है।'

और सब-के-सब हुर्र हो गये! मैं भी सड़क के नीचे उतर गया और एक गली में घुसकर गायब हो गया!

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5. मोटेराम जी शास्त्री

पण्डित मोटेराम जी शास्त्री को कौन नहीं जानता! आप अधिकारियों का रुख देखकर काम करते हैं। स्वदेशी आन्दोंलनों के दिनों में आपने उस आन्दोलन का खूब विरोध किया था। स्वराज्य आन्दोलन के दिनों में भी आपने अधिकारियों से राजभक्ति की सनद हासिल की थी। मगर जब इतनी उछल-कूद पर उनकी तकदीर की मीठी नींद न टूटी, और अध्यापन कार्य से पिण्ड न छूटा, तो अन्त में अपनी एक नई तदबीर सोची। घर जाकर धर्मपत्नी जी से बोले- इन बूढ़े तोतों को रटाते-रटातें मेरी खोपड़ी पच्ची हुई जाती है। इतने दिनों विद्या-दान देने का क्या फल मिला, जो और आगे कुछ मिलने की आशा करूं।

धर्मपत्नी ने चिन्तित होकर कहा- भोजनों का भी तो कोई सहारा चाहिए।

मोटेराम- तुम्हें जब देखो, पेट ही की फ्रिक पड़ी रहती है। कोई ऐसा विरला ही दिन जाता होगा कि निमन्त्रण न मिलते हों, और चाहे कोई निन्दा करे, पर मैं परोसा लिये बिना नहीं आता हूं। आज ही सब यजमान मरे जाते हैं? मगर जन्म-भर पेट ही जिलाया तो क्या किया। संसार का कुछ सुख भी तो भोगना चाहिए। मैंने वैद्य बनने का निश्चय किया है।

स्त्री ने आश्चर्य से कहा- वैद्य बनोगे, कुछ वैद्यकी पढ़ी भी है?

मोटे- वैद्यक पढ़ने से कुछ नहीं होता, संसार में विद्या का इतना महत्व नहीं जितना बुद्धि का। दो-चार सीधे-सादे लटके हैं, बस और कुछ नहीं। आज ही अपने नाम के आगे भिषगाचार्य बढ़ा लूंगा, कौन पूछने आता है, तुम भिषगाचार्य हो या नहीं। किसी को क्या गरज पड़ी है जो मेरी परीक्षा लेता फिरे। एक मोटा-सा साइनबोर्ड बनवा लूंगा। उस पर शब्द लिखें होंगे- यहाँ स्त्री पुरुषों के गुप्त रोगों की चिकित्सा विशेष रूप से की जाती है। दो-चार पैसे का हरड़-बहेड़ा-आंवला कूट छानकर रख लूंगा। बस, इस काम के लिए इतना सामान पर्याप्त है। हां, समाचारपत्रों में विज्ञापन दूंगा और नोटिस बंटवाऊंगा। उसमें लंका, मद्रास, रंगून, कराची आदि दूरस्थ स्थानों के सज्जनों की चिट्ठियां दर्ज की जाएंगी। ये मेरे चिकित्सा-कौशल के साक्षी होंगे जनता को क्या पड़ी है कि वह इस बात का पता लगाती फिरे कि उन स्थानों में इन नामों के मनुष्य रहते भी हैं, या नहीं। फिर देखो वैद्यकी कैसी चलती है।

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