कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 33 प्रेमचन्द की कहानियाँ 33प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तैंतीसवाँ भाग
स्त्री- लेकिन बिना जाने-बूझ दवा दोगे, तो फायदा क्या करेगी?
मोटे- फायदा न करेगी, मेरी बला से। वैद्य का काम दवा देना है, वह मृत्यु को परास्त करने का ठेका नहीं लेता, और फिर जितने आदमी बीमार पड़ते हैं, सभी तो नहीं मर जाते। मेरा यह कहना है कि जिन्हें कोई औषधि नहीं दी जाती, वे विकार शान्त हो जाने पर ही अच्छे हो जाते हैं। वैद्यों को बिना मांगे यश मिलता है। पांच रोगियों में एक भी अच्छा हो गया, तो उसका यश मुझे अवश्य ही मिलेगा। शेष चार जो मर गये, वे मेरी निन्दा करने थोडे ही आवेंगे। मैंने बहुत विचार करके देख लिया, इससे अच्छा कोई काम नहीं है। लेख लिखना मुझे आता ही है, कवित्त बना ही लेता हूं, पत्रों में आयुर्वेद-महत्व पर दो-चार लेख लिख दूंगा, उनमें जहां-तहां दो-चार कवित्त भी जोड़ दूंगा और लिखूंगा भी जरा चटपटी भाषा में। फिर देखो कितने उल्लू फसते हैं यह न समझो कि मैं इतने दिनों केवल बूढे तोते ही रटाता रहा हूं। मैं नगर के सफल वैद्यों की चालों का अवलोकन करता रहा हूं और इतने दिनों के बाद मुझे उनकी सफलता के मूल-मंत्र का ज्ञान हुआ है। ईश्वर ने चाहा तो एक दिन तुम सिर से पांव तक सोने से लदी होगी।
स्त्री ने अपने मनोल्लास को दबाते हुए कहा- मैं इस उम्र में भला क्या गहने पहनूंगी, न अब वह अभिलाषा ही है, पर यह तो बताओ कि तुम्हें दवाएं बनानी भी तो नहीं आती, कैसे बनाओगे, रस कैसे बनेंगे, दवाओं को पहचानते भी तो नहीं हो।
मोटे- प्रिये! तुम वास्तव में बड़ी मूर्ख हो। अरे वैद्यों के लिए इन बातों में से एक भी आवश्यकता नहीं, वैद्य की चुटकी की राख ही रस है, भस्म है, रसायन है, बस आवश्यकता है कुछ ठाट-बाट की। एक बड़ा-सा कमरा चाहिए उसमें एक दरी हो, ताखों पर दस-पांच शीशी या बोतल हों। इसके सिवा और कोई चीज दरकार नहीं, और सब कुछ बुद्धि आप ही आप कर लेती है। मेरे साहित्य-मिश्रित लेखों का बड़ा प्रभाव पड़ेगा, तुम देख लेना। अलंकारों का मुझे कितना ज्ञान है, यह तो तुम जानती ही हो। आज इस भूमण्डल पर मुझे ऐसा कोई नहीं दिखता जो अलंकारों के विषय में मुझसे पेश पा सके। आखिर इतने दिनों घास तो नहीं खोदी है! दस-पांच आदमी तो कवि-चर्चा के नाते ही मेरे यहां आया जाया करेगें। बस, वही मेरे दल्लाह होंगे। उन्हीं की मार्फत मेरे पास रोगी आवेंगे। मैं आयुर्वेद-ज्ञान के बल पर नहीं नायिका-ज्ञान के बल पर धड़ल्ले से वैद्यक करूंगा, तुम देखती तो जाओ।
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