कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 33 प्रेमचन्द की कहानियाँ 33प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तैंतीसवाँ भाग
मोटे.- ''नहीं बच्चा, यह ब्राह्मणों का कर्त्तव्य नहीं। उसकी नीचता का दंड उसे भगवान देंगे। हमने क्षमा किया।''
यह कहते-कहते शास्त्रीजी की आँखों में आँसू बहने लगे, अपने जीवन में वह कभी इतने लज्जित न हुए थे।
चिंतामणि ने समझाया- ''भैया, आप व्यर्थ दिल छोटा करते हैं। आपको चाहिए कि हम लोगों को समझाएँ, सो आप ही रोने लगे। ईश्वर ने जो भाग्य में लिखा है, वह तो पूरा होकर ही रहेगा, पर देख लीजिएगा इसकी कसर शीघ्र ही निकल जाएगी।''
मोटेराम ने आँसू पोंछते हुए कहा- ''क्या कसर निकल जाएगी मित्र! यह घाव कभी न भरेगा। हम लोग भी कितने अभागे हैं कि भोजन के लिए दूसरों का मुँह ताकते हैं! इस वक्त ऐसा जी चाहता है कि चाहे मर जाऊँ, पर पाठशाले की सूरत न देखूँ। जो प्राणी अपने पुरुषार्थ से इच्छानुसार भोजन भी न प्राप्त कर सके, उसका जीवन निरर्थक है। मैंने हुक्काम की जितनी खुशामद की, रईसों का जितना यश गाया, उसकी आधी लगन से कोई और काम करता तो आज आदमी बन गया होता। आज इस धूर्त घसीटे ने मेरी आँखें खोल दीं।''
चिंता.- ''देखो, आज सोना भाभी क्या कहती हैं!''
मोटे.- ''मेरे तो अभी से पाँव थरथरा रहे हैं। सच पूछो तो कहीं मुँह दिखाने योग्य नहीं रहा। सोना जीता न छोड़ेगी।''
7. यह भी नशा, वह भी नशा
होली के दिन राय साहब पण्डित घसीटेलाल की बारहदरी में भंग छन रही थी कि सहसा मालूम हुआ, जिलाधीश मिस्टर बुल आ रहे हैं। बुल साहब बहुत ही मिलनसार आदमी थे और अभी हाल ही में विलायत से आये थे। भारतीय रीति-नीति के जिज्ञासु थे, बहुधा मेले-ठेलों में जाते थे। शायद इस विषय पर कोई बड़ी किताब लिख रहे थे। उनकी खबर पाते ही यहाँ बड़ी खलबली मच गयी। सब-के-सब नंग-धिड़ंग, मूसरचन्द बने भंग छान रहे थे। कौन जानता था कि इस वक्त साहब आएँगे। फुर-से भागे, कोई ऊपर जा छिपा, कोई घर में भागा, पर बिचारे राय साहब जहाँ के तहाँ निश्चल बैठे रह गये। आधा घण्टे में तो आप काँखकर उठते थे और घण्टे भर में एक कदम रखते थे, इस भगदड़ में कैसे भागते। जब देखा कि अब प्राण बचने का कोई उपाय नहीं है, तो ऐसा मुँह बना लिया मानो वह जान बूझकर इस स्वदेशी ठाट से साहब का स्वागत करने को बैठे हैं। साहब ने बरामदे में आते ही कहा- हलो राय साहब, आज तो आपका होली है?
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