लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 34

प्रेमचन्द की कहानियाँ 34

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :146
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9795
आईएसबीएन :9781613015322

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

428 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौंतीसवाँ भाग


राजकुमार ने इधर पीठ फेरी, उधर राजा साहब ने फिर अप्सराओं को बुलाया और फिर चित्त को प्रफुल्लित करनेवाले गानों की आवाजें गूँजने लगीं। उनके संगीत-प्रेम की नदी कभी इतने जोर-शोर से न उमड़ी थी, वाह-वाह की बाढ़ आई हुई थी, तालियों का शोर मचा हुआ था और सुर की किश्ती उस पुरशोर दरिया में हिंडोले की तरह झूल रही थी। यहाँ तो नाच-गाने का हंगामा गरम था और रनिवास में रोने-पीटने का। रानी भान कुँवर दुर्गा की पूजा करके लौट रही थी कि एक लौंडी ने आकर यह मर्मान्तक समाचार दिया। रानी ने आरती का थाल जमीन पर पटक दिया। वह एक हफ्ते से दुर्गा का व्रत रखती थीं। मृगछाले पर सोती और दूध का आहार करती थीं। पाँव थर्राये, जमीन पर गिर पड़ीं। मुरझाया हुआ फूल हवा के झोंके को न सह सका। चेरियाँ सम्हल गयीं और रानी के चारों तरफ गोल बांधकर छाती और सिर पीटने लगीं। कोहराम मच गया। आँखों में आँसू न सही, आँचलों से उनका पर्दा छिपा हुआ था, मगर गले में आवाज तो थी। इस वक्त उसी की जरुरत थी। उसी की बुलन्दी और गरज में इस समय भाग्य की झलक छिपी हुई थी। लौडियाँ तो इस प्रकार स्वामिभक्ति का परिचय देने में व्यस्त थीं और भानकुँवर अपने खयालों में डूबी हुई थीं। कुंवर से ऐसी बेअदबी क्योंकर हुई, यह खयाल में नहीं आता। उसने कभी मेरी बातों का जवाब नहीं दिया, जरूर राजा की ज्यादती है। इसने इस नाच-रंग का विरोध किया होगा, किया ही चाहिए। उन्हें क्या, जो कुछ बनेगी-बिगड़ेगी उसे जिम्मे लगेगी। यह गुस्सेवर हैं ही। झल्ला गये होंगे। उसे सख्त-सुस्त कहा होगा। बात की उसे कहाँ बर्दाश्त, यही तो उसमें बड़ा ऐब है, रुठकर कहीं चला गया होगा। मगर गया कहाँ? दुर्गा! तुम मेरे लाल की रक्षा करना, मैं उसे तुम्हारे सुपुर्द करती हूँ। अफसोस, यह गजब हो गया। मेरा राज्य सूना हो गया और इन्हें अपने राग-रंग की सूझी हुई है। यह सोचते-सोचते रानी के शरीर में कँपकँपी आ गई, उठकर गस्से से काँपती हुई वह बेधड़क नाचगाने की महफिल की तरफ चली। करीब पहुँची तो सुरीली तानें सुनाई दीं। एक बरछी-सी जिगर में चुभ गयी। आग पर तेल पड़ गया।

रानी को देखते ही गानेवालियों में एक हलचल-सी मच गई। कोई किसी कोने में जा छिपी, कोई गिरती-पड़ती दरवाजे की तरफ भागी। राजा साहब ने रानी की तरफ घूरकर देखा। भयानक गुस्से का शोला सामने दहक रहा था। उनकी त्योरियों पर भी बल पड़ गए। खून बरसाती हुई आँखें आपस में मिलीं। मोम ने लोहे का सामना किया। रानी थर्रायी हुई आवाज में बोली- मेरा इन्दरमल कहाँ गया? यह कहते-कहते उसकी आवाज रुक गई और होंठ काँपकर रह गए।

राजा ने बेरुखी से जवाब दिया- मैं नहीं जानता।

रानी सिसकियाँ भरकर बोली- आप नहीं जानते कि वह कल तीसरे पहर से गायब है और उसका कहीं पता नहीं? आपकी इन जहरीली नागिनों ने यह विष बोया है। अगर उसका बाल भी बाँका हुआ तो उसके जिम्मेदार आप होंगे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book