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प्रेमचन्द की कहानियाँ 34

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :146
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9795
आईएसबीएन :9781613015322

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौंतीसवाँ भाग


रानी भानकुंवर के चले जाने के बाद राजा देवमल फिर अपने कमरे में आ बैठे, मगर चिन्तित और मन बिलकुल बुझा हुआ, मुर्दे के समान। रानी की सख्त बातों से दिल के सबसे नाजुक हिस्सों में टीस और जलन हो रही थी। पहले तो वह अपने ऊपर झुंझलाए कि मैंने उसकी बातों को क्यों इतने धीरज से सुना मगर जब गुस्से की आग धीमी हुई और दिमाग का सन्तुलन फिर असली हालत पर आया तो उन घटनाओं पर अपने मन में विचार करने लगे। न्यायप्रिय स्वभाव के लोगों के लिए क्रोध एक चेतावनी होती है, जिससे उन्हें अपने कथन और आचार की अच्छाई और बुराई को जाँचने और आगे के लिए सावधान हो जाने का मौका मिलता है। इस कड़वी दवा से अकसर अनुभव को शक्ति संकट को व्यापकता और चिन्तन को सजगता प्राप्त होती है। राजा सोचने लगे- बेशक रियासत के अन्दरूनी हालात के लिहाज से यह सब नाच-रंग बेमौका है। बेशक वह रिआया के साथ अपना फर्ज नहीं अदा कर रहे थे। वह इन खर्चो और इस नैतिक धब्बे को मिटाने के लिए तैयार थे, मगर इस तरह कि नुक्ताचीनी करने वाली आँखें उसमें कुछ और मतलब न निकाल सकें। रियासत की शान कायम रहे। इतना इन्दरमल से उन्होंने साफ कह दिया था कि अगर इतने पर भी अपनी जिद से बाज नहीं आता तो उसकी ढिठाई है। हर एक मुमकिन पहलू से गौर करने पर राजा साहब के इस फैसले में जरा भी फेर फार न हुआ। कुंवर का यों गायब हो जाना जरूर चिन्ता की बात है और रियासत के लिए उसके खतरनाक नतीजे हो सकते हैं मगर वह अपने आप को इन नतीजों की जिम्मदारियों से बिलकुल बरी समझते थे। वह यह मानते थे कि इन्दरमल के चले जाने के बाद उनका यह महफिलें जमाना बेमौका और दूसरों को भड़कानेवाला था मगर इसका कुंवर के आखिरी फैसले पर क्या असर पड़ सकता है? कुंवर ऐसा नादाँ, नातजुर्बेकार और बुजदिल तो नहीं है कि आत्महत्या कर ले, हाँ, वह दो-चार दिन इधर-उधर आवारा घूमेगा और अगर ईश्वर ने कुछ भी विवेक उसे दिया तो वह दुखी और लज्जित होकर जरूर चला आएगा। मैं खुद उसे ढूँढ़ निकालूँगा। वह ऐसा कठोर नहीं है कि अपने बूढ़े बाप की मजबूरी पर कुछ भी ध्यान न दे। इन्दरमल से फारिग होकर राजा साहब का ध्यान रानी की तरफ पहुँचा और जब उसकी आग की तरह दहकती हुई बातें याद आयीं तो गुस्से से बदन में पसीना आ गया और वह बेताब होकर उठकर टहलने लगे। बेशक, मैं उसके साथ बेरहमी से पेश आया। माँ को अपनी औलाद ईमान से भी ज्यादा प्यारी होती है और उसका रुष्ट होना उचित था मगर इन धमकियों के क्या माने? इसके सिवा कि वह रूठकर मैके चली जाए और मुझे बदनाम करे, वह मेरा और क्या कर सकती है? अक्लमन्दों ने कहा है कि औरत की आज बेवफा होती है, वह मीठे पानी की चंचल, चुलबुली-चमकीली धारा है, जिसकी गोद में चहकती और चिमटती है उसे बालू का ढेर बनाकर छोड़ती है। यही भानकुँवर है जिसकी नाजबरदारियां मुहब्बत का दर्जा रखती हैं। आह, क्या वह पिछली बातें भूल जाऊँ! क्या उन्हें किस्सा समझकर दिल को तसकीन दूँ। इसी बीच में एक लौंड़ी ने आकर कहा कि महारानी ने हाथी मँगवाया है और न जाने कहाँ जा रही हैं। कुछ बताती नहीं। राजा ने सुना और मुँह फेर लिया।

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