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प्रेमचन्द की कहानियाँ 34

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :146
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9795
आईएसबीएन :9781613015322

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौंतीसवाँ भाग

7. राजा हरदौल

बुंदेलखंड में 'ओरछा' पुराना राज्य है। इसके राजा बुंदेले हैं। इन बुंदेलों ने पहाड़ों की घाटियों में अपना जीवन बिताया है। एक समय ओरछे के राजा जुझारसिंह थे। वे बड़े साहसी और बुद्धिमान् थे। शाहजहाँ उस समय दिल्ली के बादशाह थे। जब खानजहाँ लोदी ने बलवा किया और वह शाही मुल्क को लूटता-पाटता ओरछे की ओर आ निकला, तब राजा जुझारसिंह ने उससे मोरचा लिया। राजा के इस काम से शाहजहाँ बहुत प्रसन्न हुए, क्योंकि वे मनुष्य के गुणों की परख करने वाले थे। उन्होंने तुरंत ही राजा को दक्खिन के काम सौंपे। उस दिन ओरछे में बड़ा आनंद मनाया गया। शाही सफ़ीर, खिलत और सनद लेकर राजा के पास आया। जुझारसिंह को बड़े-बड़े काम करने का अवसर मिला। सफ़र की तैयारियाँ होने लगीं। तब राजा ने अपने छोटे भाई हरदौल सिंह को बुलाकर कहा- ''भैया मैं तो जाता हूँ अब यह राजपाट तुम्हारे सुपुर्द है। तुम भी इसे जी से प्यार करना। न्याय ही राजा का सबसे बड़ा सहायक है। न्याय की गढ़ी में कोई शत्रु नहीं घुस सकता, चाहे वह रावण की सेना या इंद्र का बल लेकर आवे पर न्याय वही सच्चा है, जिसे प्रजा भी न्याय समझे। तुम्हारा काम केवल न्याय करना न होगा, बल्कि प्रजा को अपने न्याय का विश्वास भी दिलाना होगा और मैं तुम्हें क्या समझाऊँ, तुम स्वयं समझदार हो।'' यह कहकर उन्होंने अपनी पगड़ी उतारी और हरदौलसिंह के सिर पर रख दी। हरदौल रोता हुआ उनके पैरों से लिपट गया।

इसके बाद राजा अपनी रानी से विदा होने के लिए रनिवास आए। रानी दरवाजे पर खड़ी रो रही थी। उन्हें देखते ही पैरों पर गिर पड़ी। जुझारसिंह ने उठाकर उसे छाती से लगाया और कहा- ''प्यारी! यह रोने का समय नहीं है। बुंदेलों की स्त्रियाँ ऐसे अवसरों पर रोया नहीं करतीं। ईश्वर ने चाहा, तो हम तुम जल्द मिलेंगे! मुझ पर ऐसी ही प्रीति रखना। मैंने राजपाट हरदौल को सौंपा है; वह अभी लड़का है। उसने अभी दुनिया नहीं देखी है। अपनी सलाहों से उसकी मदद करती रहना।'' रानी की जबान बंद हो गई। वह अपने मन में कहने लगी- ''हाय यह कहते हैं, बुंदेलों की स्त्रियाँ ऐसे अवसरों पर रोया नहीं करतीं। शायद उनके हृदय नहीं होता, या अगर होता है तो उसमे प्रेम न होगा।'' रानी कलेजे पर पत्थर रखकर आँसू पी गई और हाथ जोड़कर राजा की ओर मुसकुराती हुए देखने लगी, पर क्या वह मुस्कराहट थी? जिस तरह घुप्प अँधेरे मैदान में मशाल की रोशनी अँधेरे को और भी अथाह कर देती है उसी तरह रानी की मुस्कुराहट उसके मन के अथाह दुःख को और भी प्रकट कर रही थी। जुझारसिंह के चले जाने के बाद हरदौलसिंह राज करने लगे। थोड़े ही दिनों में उनके न्याय और प्रजावात्सल्य ने प्रजा का मन हर लिया।

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