कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 36 प्रेमचन्द की कहानियाँ 36प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छत्तीसवाँ भाग
मिसेज टंडन ने मुसकिराकर कहा- ''यहीं ऊपर का काम करने के लिए नौकर है। कोई काम हो तो बुलाऊँ?''
मिस खुरशेद ने धन्यवाद देकर कहा- ''जी नहीं, कोई विशेष काम नहीं है। मुझे चालबाज मालूम होती है। यह भी देख रही हूँ कि यहाँ की वह सेविका नहीं, स्वामिनी है।''
मिसेज टंडन तो जुगनू से जली बैठी ही थीं। इनके वैधव्य को लाँछित करने के लिए वह इन्हें सदा सोहागन कहा करती थी। मिस खुरशेद से उसकी जितनी बुराई हो सकी वह की और उससे सचेत रहने का आदेश दिया। मिस खुरशेद ने गंभीर होकर कहा- ''तब तो भयंकर स्त्री है। जभी सब देवियाँ इससे काँपती हैं। आप इसे निकाल क्यों नहीं देतीं। ऐसी चुड़ेल को एक दिन न रखना चाहिए।''
मि. टंडन ने अपनी मजबूरी जताई- ''निकाल कैसे दूँ। जिंदा रहना मुश्किल हो जाए। हमारा भाग्य उसकी मुट्ठी में है, आपको दो-चार दिन में उसके जौहर खुलेंगे। मैं तो डरती हूँ कहीं आप भी उसके पंजे में न फँस जाएँ। उसके सामने भूलकर भी किसी पुरुष से बातें न कीजिएगा। इसके गोयंदे न-जाने कहाँ-कहाँ लगे हुए हैं। नौकरों से मिलकर भेद यह ले, डाकियों से मिलकर चिट्ठियाँ यह देखे, लड़कों को फुसलाकर घर का हाल यह पूछे। इस रांड को तो खुफ़िया पुलिस में जाना चाहिए था। यहाँ न-जाने क्यों आ मरी।''
मिस खुरशेद चिंतित हो गईं, मानो इस समस्या को हल करने की फ़िक्र में हों। एक क्षण बाद बोलीं- ''अच्छा मैं इसे ठीक करूँगी। अगर निकाल न दूँ तो कहना।''
मि. टंडन- ''निकाल देने ही से क्या होगा। उसकी जुबान तो न बंद होगी। तब तो वह और भी निडर होकर कीचड़ फेंकेगी।''
मिस खुरशेद ने निश्चिंत स्वर में कहा- ''मैं उसकी ज़बान भी बंद कर दूँगी बहन। आप देख लीजिएगा। टके की औरत, यहाँ बादशाहत कर रही है। मैं यह बर्दाश्त नहीं कर सकती।''
वह चली गई तो मिसेज टंडन ने जुगनू को बुलाकर कहा- ''इस नई मिस साहब को देखा। यहाँ प्रिंसिपल है।''
जुगनू ने द्वेष से भरे हुए स्वर में कहा- ''आप देखें। मैं ऐसी सैकड़ों छोकरियाँ देख चुकी हूँ। आँखों का पानी जैसे मर गया हो।''
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