कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 36 प्रेमचन्द की कहानियाँ 36प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छत्तीसवाँ भाग
मिस टंडन- ''धीरे से बोलो। तुम्हें कच्चा ही खा जाएगी। उनसे डरती रहना। कह गई हैं, मैं इसे ठीक करके छोड़ँगी। मैंने सोचा तुम्हें चेता हूँ। ऐसा न हो उसके सामने कुछ ऐसी-वैसी बातें कह बैठो।''
जुगनू ने मानो तलवार खींचकर कहा- ''मुझे चेताने का काम नहीं, उन्हें चेता दीजिएगा। यहाँ का आना न बंद कर दूँ तो अपने बाप की नहीं। वह घूमकर दुनिया देख आई हैं तो यहाँ घर बैठे दुनिया देख चुकी हूँ।''
मिसेज टंडन ने पीठ ठोंकी- ''मैंने समझा दिया भाई, आगे तुम जानो तुम्हारा काम जाने।''
जुगनू- ''आप चुपचाप देखती जाइए। कैसा तिगनी का नाच नचाती हूँ। इसने अब तक ब्याह क्यों नहीं किया? उमर तो तीस के लगभग होगी।''
मिसेज टंडन ने रद्दा जमाया- ''कहती हैं मैं शादी करनी ही नहीं चाहती। किसी पुरुष के हाथ क्यों अपनी आजादी बेचूँ।''
जुगनू ने आँखें नचाकर कहा- ''कोई पूछता ही न होगा। ऐसी बहुत-सी क्यारियाँ देख चुकी हूँ। सत्तर चूहे खाके बिल्ली चली हज्ज को।''
और कई लेडियाँ आ गई और बात का सिलसिला बंद हो गया।
दूसरे दिन सबेरे जुगनू मिस खुरशेद के बँगले पर पहुँची। मिस खुरशेद हवा खाने गई हुई थीं। खानसामा ने पूछा- ''कहाँ से आती हो?''
जुगनू- ''यहीं रहती हूँ बेटा। मेम साहव कहाँ से आई हैं। तुम तो इनके पुराने नौकर होगे?''
खान.- ''नागपूर से आई हैं। मेरा घर भी वहीं है। दस साल से इनके साथ हूँ।''
जुगनू- ''किसी ऊँचे खानदान की होंगी। वह तो रंग-ढंग से ही मालूम होता है।''
खान.- ''खानदान तो कुछ ऐसा ऊँचा नहीं है, हाँ तक़दीर की अच्छी हैं। इनकी माँ अभी तक मिशन में 3० रुपए पाती हैं। यह पढ़ने में तेज थीं, वज़ीफ़ा मिल गया, विलायत चली गईं, बस तकदीर खुल गई। अब तो अपनी माँ को बुलानेवाली हैं, लेकिन वह बुढ़िया शायद ही आए। यह गिरजे-विरजे नहीं जातीं, इससे दोनों में पटती नहीं।''
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