कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 36 प्रेमचन्द की कहानियाँ 36प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छत्तीसवाँ भाग
जुगनू चुपके से निकलकर बाहर आई। खानसामा खड़ा था। पूछा- ''यह लौंडा कौन है?
खानसामा ने सिर हिलाया- ''मैंने इसे आज ही देखा है। शायद अब क्वांरपन से जी ऊबा। अच्छा तरहदार जवान है।
जुगनू- ''दोनों इस तरह टूटकर गले मिले हैं कि मैं तो लाज के मारे गड़ गई। ऐसी चूमाचाटी तो जोरू-खसम में नहीं होती। दोनों लिपट गए। लौंडा तो मुझे देखकर कुछ झिझकता था, पर तुम्हारी मिस साहब तो जैसे मतवाली हो गई थीं।''
खानसामा ने मानो अमंगल के आभास से कहा- ''मुझे तो कुछ बेढब मुआमला नज़र आता है।''
जुगनू तो यहाँ से सीधे मिसेज़ टंडन के घर पहुँची। इधर मिस खुरशेद और युवक में बातें होने लगीं।
मि. खुरशेद ने क़हक़हा मारकर कहा- ''तुमने अपना पार्ट खूब खेला लीला। बुढ़िया सचमुच चौंधिया गई।''
लीला- ''मैं तो डर रही थी कहीं बुढ़िया भाँप न जाए।''
मि. खुरशेद- ''मुझे विश्वास था, वह आज जरूर आएगी। मैंने दूर ही से उसे बरामदे में देखा और तुम्हें सूचना दी। आज आश्रम में बड़े मज़े रहेंगे। जी चाहता है, महिलाओं की कनफुसकियाँ सुनती। देख लेना सभी उसकी बातों पर विश्वास करेंगी।'
लीला- ''तुम भी तो जान-बूझकर दलदल में पाँव रख रही हो।''
मि. खुरशेद- ''मुझे अभिनय में मज़ा आता है, बहन। जरा दिल्लगी रहेगी। बुढ़िया ने बड़ा जुल्म कर रखा है। जरा उसे सबक़ देना चाहती हूँ। कल तुम इसी वक्त इसी ठाट से फिर आ जाना। बुढ़िया कल फिर आएगी। उसके पेट में पानी न हजम होगा। नहीं ऐसा क्यों। जिस वक्त वह आएगी, मैं तुम्हें खबर दूँगी। बस तुम छैला बनी हुई पहुँच जाना।''
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