कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 36 प्रेमचन्द की कहानियाँ 36प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छत्तीसवाँ भाग
आश्रम में उस दिन जुगनू को दम मारने की फुर्सत न मिली। उसने सारा वृत्तांत मिसेज़ टंडन से कहा। मिसेज टंडन दौड़ी हुई आश्रम पहुँचीं और अन्य महिलाओं को खबर सुनाई। जुगनू उसकी तस्दीक़ करने के लिए बुलाई गई। जो महिला आती, वह जुगनू के मुँह से यह कथा सुनती। हरेक रिहर्सल में कुछ-कुछ रंग और चढ़ जाता। यहाँ तक कि दोपहर होते-होते सारे शहर के सभ्य समाज में यह खबर गूँज उठी।
एक देवी ने पूछा- ''यह युवक है कौन?''
मि. टंडन- ''सुना तो उनके साथ का पढ़ा हुआ है। दोनों में पहले से कुछ बातचीत रही होगी। वही तो मैं कहती थी कि इतनी उम्र हो गई, यह क्वांरी कैसे बैठी है। अब क़लई खुली।''
जुगनू- ''और कुछ हो या न हो, जवान तो बाँका है।''
टंडन- ''यह हमारी विद्वान् बहनों का हाल है।''
जुगनू- ''मैं तो उनकी सूरत देखते ही ताड़ गई थी। धूप में बाल नहीं सुफ़ेद किए हैं।''
टंडन- ''कल फिर जाना।
जुगनू- ''कल नहीं, मैं आज ही रात को जाऊँगी।''
लेकिन रात को जाने के लिए कोई बहाना जरूरी था। मिसेज़ टंडन ने आश्रम के लिए एक किताब मँगवा भेजी। रात के नौ बजे जुगनू मि. खुरशेद के बँगले पर जा पहुँची। संयोग से उस वक्त लीलावती वहाँ मौजूद थी। बोली- ''यह बुढ़िया तो बेतरह पीछे पड़ गई।''
खुरशेद- ''मैंने तो तुमसे कहा था, उसके पेट में पानी न पचेगा। तुम जाकर रूप भर आवो। तब तक मैं इसे बातों में लगाती हूँ। शराबियों की तरह अंट-शंट बकना शुरू करना। मुझे भगा ले जाने का प्रस्ताव भी करना। बस यों बन जाना, जैसे अपने होश में नहीं हो।''
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