कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 36 प्रेमचन्द की कहानियाँ 36प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छत्तीसवाँ भाग
जब देश में राजनैतिक आन्दोलन शुरू हुआ, तो उसकी भनक उस गाँव में आ पहुँची। चौधरी ने आन्दोलन का पक्ष लिया, भगत उसके विपक्षी हो गए। एक सज्जन ने आकर गाँव में किसान-सभा खोली। चौधरी उसमें शरीक हुए, भगत अलग रहे। जागृति बढ़ी, और स्वराज्य की चर्चा होने लगी। चौधरी स्वराज्यवादी हो गए, भगत ने राजभक्ति का पक्ष लिया। चौधरी का घर स्वराज्य-वादियों का अड्डा हो गया, भगत का घर राजभक्तों का क्लब बन गया।
चौधरी जनता में स्वराज्यवाद का प्रचार करने लगे- मित्रो, स्वराज्य का अर्थ है अपना राज्य। अपने देश में अपना राज्य हो, तो वह अच्छा है कि किसी दूसरे का राज्य?
जनता ने कहा- अपना राज्य हो, वह अच्छा है।
चौधरी–तो वह स्वराज्य कैसे मिलेगा?आत्मबल से, पुरुषार्थ से, मेल से। एक दूसरे से द्वेष करना छोड़ दो। अपने झगड़े आप मिलकर निपटा लो।
एक शंका- आप तो नित्य अदालत में खड़े रहते हैं।
चौधरी- हाँ, पर आज से अदालत जाऊँ, तो मुझे गऊहत्या का पाप लगे। तुम्हें चाहिए कि तुम अपनी गाढ़ी कमाई अपने बाल-बच्चों को खिलाओ, और बचे, तो परोपकार में लगाओ। वकील-मुखतार की जेब क्यों भरते हो, थानेदार को घूस क्यों देते हो, अमलों की चिरौरी क्यों करते हो? पहले हमारे लड़के अपने धर्म की शिक्षा पाते थे; वे सदाचारी, त्यागी, पुरुषार्थी बनते थे। अब वे विदेशी मदरसों में पढ़कर चाकरी करते हैं, घूस खाते हैं, शौक करते हैं। वे अपने देवताओं और पितरों की निंदा करते हैं, सिगरेट पीते हैं, बाल बनाते हैं और हाकिमों की गोड़-धरिया करते हैं। क्या यह हमारा कर्तव्य नहीं है कि हम अपने बालकों को धर्मानुसार शिक्षा दें?
जनता- चंदा करके पाठशाला खोलनी चाहिए।
चौधरी- हम पहले मदिरा का छूना पाप समझते थे। अब गाढ़ी कमाई के करोड़ों रुपये गाँजा-शराब में उड़ा देते हैं।
जनता- जो दारू भागँ पिये, उसे डाँड़ लगाना चहिए।
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