कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 36 प्रेमचन्द की कहानियाँ 36प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छत्तीसवाँ भाग
चौधरी- हमारे दादा-बाबा, छोटे-बड़े सब गाढ़ा-गजी पहनते थे। हमारी दादियाँ, नानियाँ चरखा काता करती थीं। सब धन देश में रहता था, हमारे जुलाहे भाई चैन की वंशी बजाते थे। अब हम विदेश के बने हुए महीन, रंगीन कपड़ों पर जान देते हैं। इस तरह दूसरे देशवाले हमारा धन ढो ले जाते हैं, बेचारे जुलाहे कंगाल हो गए। क्या हमारा यही धर्म है कि अपने भाइयों की थाली छीनकर दूसरों के सामने रख दें?
जनता- गाढ़ा कहीं मिलता ही नहीं।
चौधरी- अपने घर का बना हुआ गाढ़ा पहनों, अदालतों को त्यागो, नशेबाजी छोड़ो, अपने लड़कों को धर्म-कर्म सिखाओ मेल से रहो-बस, यही स्वराज्य है। जो लोग कहते हैं कि स्वराज्य के लिए खून की नदी बहेगी, वे पागल हैं-उनकी बातों पर ध्यान मत दो।
जनता ये बातें बड़े चाव से सुनती थी, और दिनोंदिन श्रोताओं की संख्या बढ़ती जाती थी। चौधरी सबके श्रद्धा-भाजन बन गए !
भगतजी राजभक्ति का उपदेश करने लगे- भाइयों, राजा का काम राज्य करना और प्रजा का काम उसकी आज्ञा-पालन करना है। इसी को राजभक्ति कहते हैं, और हमारे धार्मिक ग्रंथों में हमें इसी राजभक्ति की शिक्षा दी गई है। राजा ईश्वर का प्रतिनिधि है। उसकी आज्ञा के विरुद्ध चलना महान् पातक है। राजा का विमुख प्राणी नरक का भागी होता है।
एक शंका- राजा को भी तो अपने धर्म का पालन करना चाहिए।
दूसरी शंका- हमारे तो राजा नाम के हैं, असली राजा तो विलायत के बनिये महाजन हैं।
तीसरी शंका- बनिये धन कमाना जानते हैं, राज्य करना क्या जानें!
भगत- लोग तुम्हें शिक्षा देते हैं कि अदालत में मत जाओ, पंचायत में मुकदमे ले जाओ; लेकिन ऐसे पंच कहाँ हैं, जो सच्चा न्याय करें, दूध का दूध और पानी का पानी कर दें? यहाँ मुँह देखी बातें होंगी। जिनका दबाव है, उनकी जीत होगी। जिनका कुछ दबाव नहीं है, वे बेचारे मारे जाएँगे। अदालतों में सब कारवाई कानून पर होती है, वहाँ छोटे-बड़े सब बराबर हैं, शेर-बकरी सब एक घाट पानी पीते हैं।
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