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प्रेमचन्द की कहानियाँ 36

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :189
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9797
आईएसबीएन :9781613015346

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छत्तीसवाँ भाग


उन्हें नौकरी करते पाँच साल हो चुके थे। अलीगढ़ में तैनात थे। ठाकुर दलजीतसिंह के घर डाका पड़ा। पुलिस को असामियों पर संदेह हुआ। कई गाँव के असामी पकड़े गए, गवाहियाँ बनाई गईं और असामियों पर मुकदमा चलने लगा। बेचारे किसान निरपराध थे। चारों ओर कोहराम मच गया। कितने ही किसान जिलाधीश के पास जाकर रोये। जिलाधीश ठाकुर साहब के मित्र थे, साल में दो-चार दावतें खाते, उनके हलके में शिकार खेलते, उनकी मोटर और फिटन पर सवार होते थे। असामियों की गुस्ताखी पर बिगड़ गए। उन्हें डाँट-डपटकर दुत्कार दिया। ज्वाला और भी दहकी। साहब ने बाबू हरिविलास को बंगले पर बुलाकर ताकीद की कि मुलाजिमों की सजा अवश्य करना, नहीं तो जिले में बलवा हो जाएगा, किंतु हरिविलास को जब मालूम हुआ कि गवाह बनाए हुए हैं और ज्यादती ठाकुर साहब की ही है तो उन्होंने मुल्जिमों को बरी कर दिया। हाकिम जिला ने यह फ़ैसला सुना तो जामे से बाहर हो गए। हरिविलास को रिपोर्ट की। बदली हो गई।

दूसरी बार फिर नीच जातिवालों के साथ न्याय करने का उन्हें ऐसा ही फल मिला। लखनऊ में थे, वहीं देहाती मदरसों में नीच जातियों के लड़के दाखिल न होने पाते थे। कुछ तो अध्यापकों का विरोध. था, उनसे ज्यादा गाँव के लोगों का। हरिविलास दौरे पर गए और यह शिकायत सुनी तो कई अध्यापकों की तम्बीह की, कई आदमियों पर जुर्माना किया। ज़ागीरदारों ने यह देखा तो उनसे द्वेष करने लगे। गुमनाम चिट्ठियाँ, झूठी शिकायतों से भरी हुई हाकिमों के पास पहुँचने लगीं। तहसीलदारों ने जमींदारों को और भी उकसाया। एक कुरमी का इतने ऊँचे पद पर पहुँचना सभी को खटकता था। नतीजा यह हुआ कि लोगों ने अपने लडके मदरसे से उठा लिए, कई मदरसे बंद हो गए। हरिविलास की खासी बदनामी हो गई। हाकिम जिला ने उन्हें वहाँ रखना उचित न समझा। उनकी बदली कर दी। एक दरजा भी घट गया।

इन अन्यायों के होते हुए भी बाबू हरिविलास का-सा कर्त्तव्यशील अफ़सर सारे प्रांत में न था। उन्हें विश्वास था कि मेरे स्थानीय अफ़सर कितने ही पक्षपाती हों, उनकी नीति कितनी ही संकुचित हो, पर देश का शासन सत्य और न्याय पर ही स्थित है। अँग्रेजी राज्य की वह सदैव स्तुति किया करते थे। यह इसी शासनकाल की उदारता थी कि उन्हें ऐसा ऊँचा पद मिला था, नहीं तो उनके लिए यह अवसर कहाँ थे? दीनों और असहायों की इतनी रक्षा किसने की? शिक्षा की इतनी उन्नति कब हुई? व्यापार का इतना प्रसार कब हुआ? राष्ट्रीय भावों की ऐसी जागृति कहाँ थी? वह जानते थे कि इस राज्य में भी कुछ-न-कुछ बुराइयाँ अवश्य हैं। मानवी संस्थाएँ कभी दोषरहित नहीं हो सकतीं, लेकिन बुराइयों से भलाइयों का पल्ला कहीं भारी है। यही विचार थे जिनसे प्रेरित होकर यूरोपीय महासमर में हरिविलास ने सरकार की खैरखाही में कोई बात उठा नहीं रखी, हज़ारों रंगरूट भरती कराए, लाखों रुपए कर्ज दिलवाए और महीनों घूम-घूमकर लोगों को उत्तेजित करते रहे। इसके उपलक्ष्य में उन्हें राय बहादुरी की पदवी मिल गई।

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