कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 36 प्रेमचन्द की कहानियाँ 36प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छत्तीसवाँ भाग
संतविलास ने कुछ उत्तर न दिया। खिन्न होकर यहाँ से उठ गए, तब बाबू हरिविलास ने श्रीविलास से पूछा- ''तुम तो इम्तिहान की तैयारी कर रहे हो?''
श्रीविलास- ''जब आप कह रहे हैं कि दौलतवालों की आजकल कोई कदर नहीं है तो फिर ऐसी शिक्षा से क्या फ़ायदा, जिसका उद्देश्य केवल धन कमाना है। मेरा भी नाम कटवा दीजिए। मैं आपकी सेवा में रहना चाहता हूँ। मेरा इरादा खेती करने का है। अंजनी भी मेरी मदद करेगी। आखिर आप देहात में चलकर कुछ-न-कुछ खेती जरूर ही कराएँगे। मुझको इस काम के लिए तैयार कर दीजिए।''
हरिविलास के मुखमंडल पर आत्माभिमान की लाली दिखाई दी। सुमित्रा से बोले- ''लो श्रीविलास ने तुम्हारी चिंताओं का अंत कर दिया। तुम सोच रही थीं कि कैसे क्या होगा। चलकर आराम से गाँव में रहो। यह खेती करेगा, तुम आराम की नींद सोओ और राम का नाम लो।''
इसके तीसरे ही दिन बाबू हरिविलास अपने गाँव में आ गए। मकान बेमरम्मत पड़ा हुआ था, आगे-पीछे घास जम गई थी; गांववालों ने द्वार पर खाद और कूड़े के ढेर लगा दिए थे। इधर वह कई साल से घर न आए थे। साफ बँगलों में रहने के आदी हो गए थे। उनके देखते यह घर झोंपड़े से भी बदतर था। शिवविलास ने असवाब उतारा और झाड़ू लेकर द्वार की सफाई करने लगा। अंजनी भी घर में झाडू देने लगी। श्रीविलास कुछ देर तक तो खड़ा देखता रहा, फिर टोकरी लेकर कूड़ा फेंकने लगा। गाँव में यह खबर फैल गई कि हरिविलास ने गाँधी महात्मा के हुक्म से इस्तीफ़ा दे दिया। लोग इधर-उधर से आने लगे। कोई उनको सत्यवादी कहता था, कोई कहता था रिश्वत ली है, बर्खास्त हो गए हैं तो यह बहाना कर रहे हैं। हरिविलास एक टूटी खाट पर उदास बैठे हुए थे, सुमित्रा भीतर खड़ी सोच रही थी कि यह कूड़े का पहाड़ क्योंकर हटेगा। पहले यह लोग जब घर आते थे तो गाँव के लोग संकोचवश इनके समीप न आते थे। इनके ठाटबाट की सामग्रियों को कौतूहल की दृष्टि से देखते थे पर कुछ बोलने की हिम्मत न पड़ती थी, किंतु अबकी वह विस्मयकारी वस्तुएँ न थीं, न लड़कों में वह शेखी थी, न हरिविलास और सुमित्रा में वह बड़प्पन की ऐंठ। अतएव सबके सब उनसे सहानुभूति करने लगे। स्त्रियाँ अंजनी के साथ घर की सफाई करने लगीं, कई आदमियों ने शिवविलास के हाथ से झाड़ू छीन लिया और कूड़ा फेंकने लगे।
रामभरोसे पंडित ने कहा- ''भैया भला कियो इस्तीफा दे दिहेव, देस विदेस मारे-मारे फिरत रह्यो। घर माटी में मिला जात रहा।''
शेख ईदू बोले- ''चाकरी चाहे छोटी हो या बड़ी हो, मुदा चाकरी ही है। जब अल्लाह ने घर में सब कुछ दिया है तो काहे को कोऊ की बंदगी उठाई जाए।''
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