कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 36 प्रेमचन्द की कहानियाँ 36प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छत्तीसवाँ भाग
संत- ''जी हाँ, कोई ढाई सौ की ज़रूरत है।''
हरिविलास- (बगलें झाँकते हुए) ''इससे कम में काम न चलेगा?''
संत- ''असंभव है। 9 महीनों की पेशगी फ़ीस देनी है, इंतहान की फ़ीस, बोर्डिग की फ़ीस, सभी तो चुकानी है। एक सूट भी बनवाना चाहता हूँ। मेरे पास ठगेई अच्छा सूट नहीं है।''
हरिविलास- ''इस समय सूट रहने दो, फिर बनवा लेना, हाँ फ़ीस का प्रबंध मैं कर दूँगा। इससे कहाँ मुक्ति? पढ़ो तो मुश्किल से पाँच महीने और फीस दो पूरे साल की।''
संत- ''तो फिर कुछ न दीजिए, मैं स्वयं कोई प्रबंध कर लूँगा। आपके ऊपर खाहमख्वाह बोझ नहीं डालना चाहता।''
हरिविलास- ''यह तुम्हारी बुरी तादत है कि ज़रा-ज़रा सी बात पर चिढ़ जाते हो। मेरी हालत देख रहे हो, फिर भी तुम्हारी आँखें नहीं खुलतीं।''
संत- ''तो क्या आपकी इच्छा है कि मैं भी कॉलेज से नाम कटा लूँ।''
हरिविलास- ''यह तो मेरी इच्छा नहीं है लेकिन अब तुम्हें अवस्थानुसार अपना खर्च घटाना पड़ेगा। मुझे यह देखकर खेद होता है कि वर्तमान दशाओं का तुम्हारे ऊपर बिलकुल असर नहीं हुआ। आजकल समस्त देश सरल जीवन की ओर झुका हुआ है। कोई मनुष्य अपने ठाटबाट, टीमटाम पर गर्व करने का साहस नहीं कर सकता। रेशमी वस्त्र और डासन के जूते और सुनहरे चश्मे अब तुच्छ दृष्टि से देखे जाते हैं। विशेषत: शिक्षित समुदाय के विलास प्रेम को तो जनता सर्वथा अक्षम्य समझती है। शिक्षित लोगों से अब सेवा और उत्सर्ग की आशा की जाती है। वकीलों पर अब सम्मान की दृष्टि नहीं पड़ती, लोग उनसे विमुख होते जा रहे हैं। धनलोलुप अध्यापकों को तो जनता घृणा की निगाह से देखती है। मैंने स्वार्थवश तुम्हें वकालत की प्रेरणा की थी, किंतु अब मुझे विश्वास होता जाता है कि हमारी जाति की अवनति का एक मुख्य कारण यही पेशा है। इसकी बदौलत हमारी अदालतों में न्याय सर्वसाधारण के लिए अलभ्य हो रहा है। जब एक-एक पेशी के लिए दो-दो, चार-चार सौ, यहाँ तक कि दो-दो, चार-चार हजार लिए जाते हैं तो स्पष्ट है कि यह समय या परिश्रम का मूल्य नहीं, बल्कि लोगों की ईर्ष्या और दुर्जनता का ब्याज है। जिस पेशे का आधार मानव दुर्बलताओं पर हो वह समाज के लिए कभी मंगलकारी नहीं हो सकता। मैं तुम्हारे इरादों में विघ्न नहीं डालना चाहता, लेकिन यदि तुम वकालत को न्याय रक्षा के लिए नहीं, विलास के लिए ग्रहण करना चाहते हो तो बेहतर है कि तुम इसे तिलांजलि दे दो।''
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