लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 36

प्रेमचन्द की कहानियाँ 36

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :189
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9797
आईएसबीएन :9781613015346

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

297 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छत्तीसवाँ भाग


एक दिन संध्या समय तेहरान का शाहजादा नादिर घोड़े पर सवार उधर से निकला। लैला गा रही थी। नादिर ने घोड़े की बाग रोक ली और देर तक आत्म-विस्मृत की दशा में खड़ा सुनता रहा। गजल का पहला शेर यह था-

मरा दर्देस्त अंदर दिल, अगर गोयम जवाँ सोज़द;
बगैर दम दरकशम, तरसन कि मगज़ो उस्तख्वाँ सोज़द।


फिर वह घोड़े से उतरकर वहीं जमीन पर बैठ गया और सिर झुकाये रोता रहा। तब वह उठा और लैला के पास जाकर उसके कदमों पर सिर रख दिया। लोग अदब से इधर-उधर हट गये।

लैला ने पूछा- तुम कौन हो?

नादिर- तुम्हारा गुलाम।

लैला- मुझसे क्या चाहते हो?

नादिर- आपकी खिदमत करने का हुक्म। मेरे झोंपड़े को अपने कदमों से रोशन कीजिए।

लैला- यह मेरी आदत नहीं।

शाहजादा फिर वहीं बैठ गया और लैला फिर गाने लगी। लेकिन गला थर्राने लगा, मानो वीणा का कोई तार टूट गया हो। उसने नादिर की ओर करुण नेत्रों से देखकर कहा- तुम यहाँ मत बैठो।

कई आदमियों ने कहा- लैला, हमारे हुजूर शाहजादा नादिर हैं।

लैला बेपरवाही से बोली- बड़ी खुशी की बात है। लेकिन यहाँ शाहजादों का क्या काम? उनके लिए महल है, महफिलें हैं और शराब के दौर हैं। मैं उनके लिए गाती हूँ, जिनके दिल में दर्द है; उनके लिए नहीं जिनके दिल में शौक है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book