कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 36 प्रेमचन्द की कहानियाँ 36प्रेमचंद
|
3 पाठकों को प्रिय 297 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छत्तीसवाँ भाग
एक दिन संध्या समय तेहरान का शाहजादा नादिर घोड़े पर सवार उधर से निकला। लैला गा रही थी। नादिर ने घोड़े की बाग रोक ली और देर तक आत्म-विस्मृत की दशा में खड़ा सुनता रहा। गजल का पहला शेर यह था-
बगैर दम दरकशम, तरसन कि मगज़ो उस्तख्वाँ सोज़द।
फिर वह घोड़े से उतरकर वहीं जमीन पर बैठ गया और सिर झुकाये रोता रहा। तब वह उठा और लैला के पास जाकर उसके कदमों पर सिर रख दिया। लोग अदब से इधर-उधर हट गये।
लैला ने पूछा- तुम कौन हो?
नादिर- तुम्हारा गुलाम।
लैला- मुझसे क्या चाहते हो?
नादिर- आपकी खिदमत करने का हुक्म। मेरे झोंपड़े को अपने कदमों से रोशन कीजिए।
लैला- यह मेरी आदत नहीं।
शाहजादा फिर वहीं बैठ गया और लैला फिर गाने लगी। लेकिन गला थर्राने लगा, मानो वीणा का कोई तार टूट गया हो। उसने नादिर की ओर करुण नेत्रों से देखकर कहा- तुम यहाँ मत बैठो।
कई आदमियों ने कहा- लैला, हमारे हुजूर शाहजादा नादिर हैं।
लैला बेपरवाही से बोली- बड़ी खुशी की बात है। लेकिन यहाँ शाहजादों का क्या काम? उनके लिए महल है, महफिलें हैं और शराब के दौर हैं। मैं उनके लिए गाती हूँ, जिनके दिल में दर्द है; उनके लिए नहीं जिनके दिल में शौक है।
|