कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 37 प्रेमचन्द की कहानियाँ 37प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सैंतीसवाँ भाग
ये लोग भीड़ को हटाते, नदी-किनारे पहुँचकर स्नान करते हैं। चार आदमी रानी के स्नान के लिए परदा करते हैं। लड़की पानी से खेल रही है, राजा साहब पंडितों को दान दे रहे हैं और लड़की पानी पर अपनी नाव तैरा रही है। अचानक नाव एक रेले में बह जाती है, लड़की उसे पकड़ने के लिए लपकती है। उसी समय भीड़ का ऐसा रेला आता है कि लड़की माँ-बाप से अलग हो जाती है। कभी इधर भागती कभी उधर, बार-बार अपनी माँ को देखने का भ्रम होता है। फिर वह रोने लगती है, डर के मारे किसी से कुछ बोलती भी नहीं, न रास्ता ही पूछती है। बस खड़ी फूट-फूटकर रो रही है और अपनी माँ को पुकारती है। अचानक एक रास्ता देखकर उसे धर्मशाला के मार्ग का भ्रम होता है। वह उसी पर हो लेती है, लेकिन वह रास्ता उसे धर्मशाला से दूर ले जाता है।
इधर लड़की को न पाकर कुँअर साहब और उनकी रानी इधर-उधर खोजने लगते हैं और बौखलाकर अपने नौकरों पर बिगड़ते हैं। नौकर लड़की की तलाश में चले जाते हैं। एक छोटी लड़की को देखकर रानी सहसा उसकी ओर दौड़ पड़ती है, लेकिन जब अपनी गलती पता चलती है तो आँखों पर हाथ रखकर रोने लगती है। कुँअर साहब गुस्से से आग बबूला हो रहे हैं, मगर तलाश करने कहीं नहीं जाते। अभी उनका साफा ठीक नहीं हुआ, अचकन भी नहीं सजी, बाल भी सँवारे नहीं जा सके। अब वहाँ नौकर तो रहे नहीं, वे पंडितों पर बिगड़ते हैं और अन्ततः नखशिख से सज-धजकर, कमर में तलवार लगाकर लड़की की तलाश में निकलते हैं। इसी मध्य गंगा के किनारे आकर रानी मन्नत माँगती है। भीड़ के मारे एक कदम चलना मुश्किल है। भीड़ बढ़ती जाती है। बेचारे हतभागे माँ-बाप धक्कम-धक्के में कभी दो पग आगे बढ़ते हैं तो कभी दो पग पीछे हो जाते हैं।
इधर रोती हुई लड़की अपनी धर्मशाला को पहचानने की कोशिश में और दूर चली जा रही है।
सहसा कुँअर साहब के मन में आता है कि शायद लड़की धर्मशाला में पहुँच गई हो और उसे नौकरों ने पा लिया हो। फौरन भीड़ को हटाते हुए दोनों धर्मशाला की ओर चल देते हैं मगर वहाँ पहुँचकर देखते हैं कि लड़की का कुछ पता नहीं। घबराकर दोनों फिर निकल पड़ते हैं। आश्चर्य यह है कि आगे-आगे लड़की रोती चली जा रही है और पीछे-पीछे माँ बाप उसकी तलाश में जा रहे हैं, बीच में केवल बीस गज की दूरी है मगर दोनों का आमना-सामना नहीं होता। यहाँ तक कि घंटों बीत जाते हैं। बादल घिर आते हैं। रानी थक जाती है, उससे एक कदम भी चला नहीं जाता। वह सड़क के किनारे बैठ जाती है और रोने लगती है। कुँवर साहब लाल-लाल आँखें निकाले, बेसुध हुए सारी दुनिया पर झल्लाए हुए हैं।
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