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प्रेमचन्द की कहानियाँ 37

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9798
आईएसबीएन :9781613015353

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सैंतीसवाँ भाग


अब इंदिरा को साफ दिखाई दे रहा है कि उसकी तबाही के सामान जुटाए जा रहे हैं। हरिहर की कविता निश्चय ही सर्वश्रेष्ठ होगी और उसे विवश होकर उसी को श्रेष्ठ कहना पड़ेगा। हरिहर के पक्ष या समर्थन में मुँह से एक शब्द भी निकालना उसके लिए घातक विष बन सकता है। उसके निर्णय पर आपत्ति करना और हरिहर की कविता में दोष निकालकर राजकुमार के मन में इंदिरा के प्रति संदेह उत्पन्न करना कुछ कठिन न होगा। वह चाहती है कि यदि अवसर मिले तो हरिहर को सावधान कर दे, लेकिन उसे इसका अवसर नहीं मिलता।

पद्मा कवि-गोष्ठी की तैयारियों में व्यस्त रहती है। नियत तिथि पर सभी कवि उपस्थित होते हैं, हरिहर भी आता है। नयी कविता की शर्त है। हरिहर ने कोई नयी कविता नहीं लिखी। अन्य कवि अपनी कविताएँ सुनाते हैं। प्रशंसा का स्वर गूँज उठता है। अन्ततः जब हरिहर की बारी आती है तो वह स्पष्ट कह देता है, ‘मैंने कोई नयी कविता नहीं लिखी।’ उसने भी पद्मा के इन प्रयासों को अपनी चतुराई से ताड़ लिया है और उसके जाल में फँसना नहीं चाहता। इंदिरा इसे दैवी सहायता समझकर मन ही मन परमात्मा को धन्यवाद देती है। एक दूसरे कवि को पुरस्कार तथा पद मिल जाता है और इंदिरा के प्रेम का रहस्य छिपा रह जाता है। यहाँ से हरिहर प्रसन्नतापूर्वक विदा होता है। रनिवास में इंदिरा भी प्रसन्न व आनन्दित है, उसके लिए इससे अधिक प्रसन्नता की बात और क्या हो सकती है?

राजकुमार ज्ञान सिंह की राजगद्दी का उत्सव मनाया जा रहा है। शहर में दीपावली मनाई जा रही है। चौराहों पर भव्य द्वार बनाए गए हैं। मुख्य द्वार से चौक तक बिजली के दोमुँहे सुन्दर बल्ब लगाए गए हैं। किनारे के वृक्षों पर बिजली से जगमगाते अक्षरों में स्तुति वाक्य लिखे गए हैं। पण्डित लोग मुहूर्त देखते हैं। उसी समय ज्ञान सिंह महल से निकलकर भव्य मण्डप में आता है जो इसी उत्सव के लिए बनाया गया है। दरबारी और रईस लोग उपहार भेंट करते हैं। ज्ञान सिंह उठकर अपनी नीति की घोषणा करता है और शाही सेवकों तथा प्रजा को अपने कर्त्तव्य-पालन हेतु निर्देशित करता है।

उसने आसामियों का आधा लगान माफ कर दिया है इसलिए प्रजा अत्यधिक प्रसन्न है। प्रसन्नता प्रकट करके सब उसे दुआएँ देते हुए विदा हो जाते हैं। फिर गरीबों में भोजन वितरित किया जाता है। बन्दियों को मुक्त करने का आदेश होता है। फिर सेना की सलामी और परेड होती है। बैंड बजता है। अफसरों को पदक और जागीरदारी मिलती है। फिर आतिशबाजियाँ छोड़ी जाती हैं। इसके पश्चात् ठाकुरद्वारे में कीर्तन होता है। वहाँ इंदिरा के दर्शनों की लालसा में हरिहर आया है, लेकिन कीर्तन करने वालों में इंदिरा नहीं है। परम्परा के प्रतिकूल वेश्याओं को आमंत्रित नहीं किया गया। इस उत्सव में ज्ञान सिंह ने अनावश्यक खर्च करना अस्वीकार कर दिया है। शहर में चर्चा है कि इंदिरा का विवाह ज्ञान सिंह से होगा। ऐसी कृपालु, दीनों की पालक और सर्वप्रिय रानी मिलने से प्रत्येक छोटा-बड़ा प्रसन्न है।

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