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प्रेमचन्द की कहानियाँ 37

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9798
आईएसबीएन :9781613015353

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सैंतीसवाँ भाग


वृन्दा को विधवा हुए तीन साल गुजरे हैं। उसका पति एक बेफिक्र और रंगीन मिजाज आदमी था। गाने-बजाने से उसे प्रेम था। घर की जो कुछ जमा-जथा थी, वह सरस्वती और उसके पुजारियों को भेंट कर दी। तीन लाख की जायदाद तीन साल के लिए भी काफी न हो सकी। मगर उसकी कामना पूरी हो गई। सरस्वती देवी ने उसे आर्शीवाद दिया और उसने संगीत-कला में ऐसा कमाल पैदा किया कि अच्छे-अच्छे गुनी उसके सामने जबान खोलते डरते थे। गाने का उसे जितना शौक था, उतनी ही मुहब्बत उसे वृन्दा से थी। उसकी जान अगर गाने में बसती थी तो दिल वृन्दा की मुहब्बत से भरा हुआ था पहले छेड़छाड़ में और फिर दिलबहलाव के लिए उसने वृन्दा को कुछ गाना सिखाया। यहां तक कि उसको भी इस अमृत का स्वाद मिल गया और यद्यपि उसके पति को मरे तीन साल गुजर गये हैं और उसने सांसारिक सुखों को अंतिम नमस्कार कर लिया है यहां तक कि किसी ने उसके गुलाब-के-से होंठों पर मुस्कराहट की झलक नहीं देखी मगर गाने की तरफ अभी तक उसकी तबियत झुकी हुई थी। उसका मन जब कभी बीते हुए दिनों की याद से उदास होता है तो वह कुछ गाकर जी बहला लेती है। लेकिन गाने में उसका उद्देश्य इन्द्रिय का आनंद नहीं होता, बल्कि जब वह कोई सुंदर राग अलापने लगती है तो ख्याल में अपने पति को खुशी से मुस्कराते हुए देखती है। वही काल्पनिक चित्र उसके गाने की प्रशंसा करता हुआ दिखाई देता है। गाने में उसका लक्ष्य अपने स्वर्गीय पति की स्मृति को ताजा करना है। गाना उसके नजदीक पतिव्रत धर्म का निबाह है।

तीन पहर रात जा चुकी है, आसमान पर चांद की रोशनी मंद हो चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है और इन विचारों को जन्म देने वाले सन्नाटे में वृन्दा जमीन पर बैठी हुई मद्धिम स्वरों में गा रही है - बता दे कोई प्रेमनगर की डगर।

वृन्दा की आवाज में लोच भी है और दर्द भी। उसमें बेचैन दिल को तसकीन देने वाली ताकत भी है और सोये हुए भावों को जगा देने की शक्ति भी। सुबह के वक्त पूरब की गुलाबी आभा में सर उठाये हुए फूलों से लदी हुई डाली पर बैठकर गानेवाली बुलबुल की चहक में भी यह घुलावट नहीं होती। यह वह गाना है जिसे सुनकर अकलुष आत्माएं सिर धुनने लगती हैं। उसकी तान कानों को छेदती हुई जिगर में आ पहुंचती है :

बता दे कोई प्रेमनगर की डगर।
मैं बौरी पग-पग पर भटकूं, काहू की कुछ नाहिं खबर।
बता दे कोई प्रेमनगर की डगर।

यकायक किसी ने दरवाजा खटखटाया और कई आदमी पुकारने लगे- किसका मकाने है, दरवाजा खोलो।

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