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प्रेमचन्द की कहानियाँ 37

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9798
आईएसबीएन :9781613015353

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सैंतीसवाँ भाग


वृन्दा का चेहरा लाल हो गया। महाराजा रणजीत सिंह एक गँवार देहाती औरत का यह हौसला, यह ख्याल और जोशीली बात सुनकर सकते में आ गये। कांच का टुकड़ा टूटकर तेज धारवाला छुरा हो जाता है वही कैफियत इन्सान के टूटे हुए दिल की है।

आखिर महाराज ने ठंडी साँस ली और हसरतभरे लहजे में बोले- श्यामा, इंसाफ जिसका खून चाहता है, वह मैं हूँ।

इतना कहने के साथ महाराज रणजीतसिंह का चेहरा भभक उठा और दिल बेकाबू हो गया। तत्काल भावनाओं के नशे में आदमी का दिल आसमान की बुलंदियों तक जा पहुंचता है। कांटे के चुभने से कराहनेवाला इन्सान इसी नशे में मस्त होकर खंजर की नोक कलेजे में चुभो लेता है। पानी की बौछार से डरनेवाला इन्सान गले-गले पानी में अकड़ता हुआ चला जाता है। इस हालत में इन्सान का दिल एक असाधारण शक्ति और असीम उत्साह अनुभव करने लगता है। इसी हालात में इन्सान छोटे-से-छोटे जलील से जलील काम करता है और इसी हालात में इन्सान अपने वचन और कर्म की ऊंचाई से देवताओं को भी लज्जित कर देता है। महाराजा रणजीतसिंह उद्विग्न होकर उठ खड़े हुए और ऊंची आवाज में बोले- श्यामा, तुम्हारे साथ जो जुल्म हुआ है उसका जबाबदेह मैं हूँ इन्साफ जिसका खून चाहता है, वह मैं हूँ। बुजुर्गों ने कहा है कि ईश्वर के सामने राजा अपने नौकरों की सख्ती और जबरदस्ती का जिम्मेदार होता है।

यह कहकर राजा ने तेजी के साथ अचकन के बन्द खोल दिये और वृन्दा के सामने घुटनों के बल, सीना फैलाकर बैठते हुए बोले- श्यामा, तुम्हारे पहलू में तलवार छिपी हुई है। वह विक्रमादित्य की तलवार है। उसने कितनी ही बार न्याय की रक्षा की है। आज एक अभागे राजा के खून से उसकी प्यास बुझा दो बेशक वह राजा अभागा है जिसके राज्य में अनाथों पर अत्याचार होता है।

वृन्दा के दिल में अब एक जबरदस्त तब्दीली पैदा हुई, बदले की भावना ने प्रेम और आदर को जगह दी। रणजीतसिंह ने अपनी जिम्मेदारी मान ली, वह उसके सामने मुजरिम की हैसियत मे इन्साफ की तलवार का निशाना बनने के लिए खड़े हैं, उनकी जान अब उसकी मुट्ठी में है। उन्हें मारना या जिलाना अब उसका अख्तियार है।

यह खयाल उसकी बदले की भावना को ठंडा कर देने के लिए काफी थे। प्रताप और ऐश्वर्य जब अपने स्वर्ण-सिंहासन से उतरकर दया की याचना करने लगता है तो कौन ऐसा हृदय है जो पसीज न जाएगा? वृन्दा ने दिल पर सब्र करके पहलू से खंजर निकाला मगर वार न कर सकी। तलवार उसके हाथ से छूटकर गिर पड़ी।

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