कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 37 प्रेमचन्द की कहानियाँ 37प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सैंतीसवाँ भाग
महाराज रणजीतसिंह समझ गये कि औरत की हिम्मत दगा दे गई। वह बड़ी तेजी से लपके और तेगे को हाथ में उठा लिया। यकायक दाहिना हाथ पागलों जैसे जोश के साथ ऊपर को उठा। वह एक बार जोर से बोले ‘वाहे गुरू की जय’ और करीब था कि तलवार सीने में डूब जाय, बिजली कौंधकर बादल के सीने में घुसने ही वाली थी कि वृन्दा एक चीख मारकर उठी और राजा के ऊपर उठे हुए हाथ को अपने दोनों हाथों से मजबूत पकड़ लिया। रणजीतसिंह ने झटका देकर हाथ छुड़ाना चाहा मगर कमजोर औरत ने उनके हाथ को इस तरह जकड़ा था कि जैसे मुहब्बत दिल को जकड़ लेती है। बेबस होकर बोले- श्यामा, इन्साफ को अपनी प्यास बुझाने दो।
श्यामा ने कहा- महाराज उसकी प्यास बुझ गई। यह तलवार इसकी गवाह है।
महाराज ने तेगे को देखा। इस वक्त उसमें दूज के चाँद की चमक थी। सत्य और न्याय के चमकते हुए सूरज ने उस चाँद को आलोकित कर दिया था।
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