लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 38

प्रेमचन्द की कहानियाँ 38

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :152
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9799
आईएसबीएन :9781613015360

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

377 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का अड़तीसवाँ भाग


चक्रधर- अजी, यहाँ तो दम घुट रहा है !

नईम- और टाई का मंशा ही क्या है? इसीलिए तो बाँधी जाती है कि आदमी बहुत जोर-जोर से साँस न ले सके।

चक्रधर के प्राण संकट में थे। आँखें सजल हो रही थीं, चेहरा सुर्ख हो गया था। मगर टाई को ढीला करने की हिम्मत न पड़ती थी। इस सजधज से आप कालेज चले तो मित्रों का एक गोल सम्मान का भाव दिखाता आपके पीछे-पीछे चला, मानों बरातियों का समूह है। एक-दूसरे की तरफ ताकता; और रूमाल मुँह में देकर हँसता था। मगर पंडितजी को क्या खबर? वह तो अपनी धुन में मस्त थे। अकड़-अकड़कर चलते हुए आकर क्लास में बैठ गये। थोड़ी देर बाद लूसी भी आयी। पंडित का यह वेष देखा, तो चकित हो गयी। उसके अधरों पर मुस्कान की एक अपूर्व रेखा अंकित हो गयी ! पंडितजी ने समझा, यह उसके उल्लास का चिह्न है। बार-बार मुस्कराकर उसकी ओर ताकने और रहस्यपूर्ण भाव से देखने लगे, किन्तु वह लेशमात्र भी ध्यान न देती थी।

पंडितजी की जीवनचर्या, धर्मोत्साह और जातीय प्रेम में बड़े वेग से परिवर्तन होने लगे। सबसे पहले शिखा पर छुरा फिरा। अँग्रेजी फैशन के बाल कटवाये गये। लोगों ने कहा- यह क्या महाशय? आप तो फरमाते थे कि शिखा द्वारा विद्युत्प्रवाह शरीर में प्रवेश करता है। अब वह किस मार्ग से जायगा?

पंडितजी ने दार्शनिक भाव से मुस्कराकर कहा- मैं तुम लोगों को उल्लू बनाता था। क्या मैं इतना भी नहीं जानता कि यह सब पाखंड है? मुझे अंतःकरण से इस पर विश्वास ही कब था; आप लोगों को चकमा देना चाहता था।

नईम- वल्लाह, आप एक ही झाँसेबाज निकले। हम लोग आपको बछिया के ताऊ ही समझते थे मगर आप तो आठों गाँठ कुम्मैत निकले।

चक्रधर- देखता कि लोग कहते क्या हैं !

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book