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प्रेमचन्द की कहानियाँ 38

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :152
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9799
आईएसबीएन :9781613015360

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का अड़तीसवाँ भाग


पत्र के साथ एक छोटा-सा पैकेट था। वास्कट उसी में बंद था। यारों ने आपस में चंदा करके बड़ी उदारता से उसका मूलधन एकत्र किया था। उस पर सेंट-परसेंट से भी अधिक लाभ होने की सम्भावना थी। पंडित चक्रधर उक्त उपहार और पत्र पाकर इतने प्रसन्न हुए, जिसका ठिकाना नहीं, उसे लेकर सारे छात्रावास में चक्कर लगा आये। मित्र-वृन्द देखते थे, उसकी काट-छाँट की सराहना करते थे; तारीफों के पुल बाँधते थे; उसके मूल्य का अतिशयोक्तिपूर्ण अनुमान करते थे। कोई कहता था- यह सीधे पेरिस से सिल कर आया है; इस मुल्क में ऐसे कारीगर कहाँ कौन, अगर कोई इस टक्कर का वास्कट सिलवा दे, तो 100 रु. की बाजी बदता हूँ? पर वास्तव में उसके कपड़े का रंग इतना गहरा था कि कोई सुरुचि रखने वाला मनुष्य उसे पहनना पसंद न करता। चक्रधर को लोगों ने पूर्व मुख करके खड़ा किया, और फिर शुभ मुहूर्त में वह वास्कट उन्हें पहनाया। आप फूले न समाते थे। कोई इधर से जाकर कहता- भाई, तुम तो बिलकुल पहचाने नहीं जाते। चोला ही बदल दिया। अपने वक्त के यूसुफ हो। यार, क्यों न हो, तभी तो यह ठाट है। मुखड़ा कैसा दमकने लगा, मानो तपाया हुआ कुंदन है। अजी, एक वास्कट पर यह जीवन है, कहीं पूरा अँग्रेजी सूट पहन लो तो न जाने क्या गजब हो जाय? सारी मिसें लोट-पोट हो जायँ। गला छुड़ाना मुश्किल हो जाय।

आखिर सलाह हुई कि उनके लिए एक अँग्रेजी सूट बनवाना चाहिए। इस कला के विशेषज्ञ उनके साथ गुट बाँधकर सूट बनवाने चले। पंडितजी घर के सम्पन्न थे। एक अँग्रेजी दूकान से बहुमूल्य सूट लिया गया। रात को इसी उत्सव में गाना-बजाना भी हुआ। दूसरे दिन, दस बजे, लोगों ने पंडितजी को सूट पहनाया। आप अपनी उदासीनता दिखाने के लिए बोले- मुझे तो बिलकुल अच्छा नहीं लगता। आप लोगों को न-जाने क्यों ये कपड़े अच्छे लगते हैं।

नईम- जरा आईने में सूरत देखिये, तो मालूम हो। खासे शाहजादे मालूम पड़ते हो। तुम्हारे हुश्न पर मुझे तो रस्क है। खुदा ने तो आपको ऐसी सूरत दी, और उसे आप मोटे कपड़ों में छिपाये हुए थे।

चक्रधर को नेकटाई बाँधने का ज्ञान न था। बोले- भाई, इसे तो ठीक कर दो।

गिरिधर सहाय ने नेकटाई इतनी कसकर बाँधी की पंडितजी को साँस लेना भी मुश्किल हो गया। बोले- यार बहुत तंग है।

गिरिधर- इसका फैशन ही यह है; हम क्या करें। ढीली टाई ऐब में दाखिल है।

नईम- इन्होंने तो फिर भी बहुत ढीली रखी है। मैं तो और भी कसकर बाँधता हूँ।

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