कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 38 प्रेमचन्द की कहानियाँ 38प्रेमचंद
|
10 पाठकों को प्रिय 377 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का अड़तीसवाँ भाग
लूसी ने पीछे फिरकर देखा, नईम को पहचानकर ठहर गयी और बोली- मुझसे उस पंडित की सिफारिश करने तो नहीं आये हो ! मैं प्रिंसिपल से उसकी शिकायत करने जा रही हूँ।
नईम- तो पहले मुझे और गिरिधर- दोनों को गोली मार दो, फिर जाना।
लूसी- बेहया लोगों पर गोली का असर नहीं होता। उसने मुझे बहुत इंसल्ट किया है।
नईम- लूसी, तुम्हारे कुसूरवार हमी दोनों हैं। वह बेचारा पंडित तो हमारे हाथ का खिलौना था। सारी शरारत हम लोगों की थी। कसम तुम्हारे सिर की !
लूसी- ल्वन दंनहीजल इवल !
नईम- हम दोनों उसे दिल-बहलाव का एक स्वाँग बनाये हुए थे। इसकी हमें जरा भी खबर न थी कि वह तुम्हें छेड़ने लगेगा। हम तो समझते थे कि उसमें इतनी हिम्मत ही नहीं है। खुदा के लिए मुआफ़ करो, वरना हम तीनों का खून तुम्हारी गरदन पर होगा।
लूसी- खैर, तुम कहते हो तो प्रिंसिपल से न कहूँगी, लेकिन शर्त यह है कि पंडित मेरे सामने बीस मरतबा कान पकड़कर उठे-बैठे और मुझे कम से कम 200) रु. तावान दे।
नईम- लूसी इतनी बेरहमी न करो। यह समझो, उस गरीब के दिल पर क्या गुजर रही होगी। काश, अगर तुम इतनी हसीन न होतीं।
लूसी मुस्कराकर बोली- खुशामद करना कोई तुमसे सीख ले।
नईम- तो अब वापस चलो।
लूसी- मेरी दोनों शर्तें मंजूर करते हो न?
नईम- तुम्हारी दूसरी शर्त तो हम सब मिलकर पूरी कर देंगे, लेकिन पहली शर्त सख्त है, बेचारा जहर खाकर मर जायगा। हाँ, उसके एवज में मैं पचास दफा कान पकड़कर उठ-बैठ सकता हूँ।
|