कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 39 प्रेमचन्द की कहानियाँ 39प्रेमचंद
|
5 पाठकों को प्रिय 289 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्तालीसवाँ भाग
लेकिन उसी वक्त आपटे की ललकार सुनाई दी- तुमने अहिंसा-व्रत लिया है और अगर किसी ने उस व्रत को तोड़ा तो उसका दोष मेरे सिर होगा। मैं तुमसे सविनय अनुरोध करता हूं कि अपने-अपने घर जाओ। अधिकारियों ने वही किया जो हम समझते थे। इस सभा से हमारा जो उद्देश्य था वह पूरा हो गया। हम यहां बलवा करने नहीं, केवल संसार की नैतिक सहानुभूति प्राप्त करने के लिए जमा हुए थे, और हमारा उद्देश्य पूरा हो गया।
एक क्षण में सभा भंग हो गयी और आपटे पुलिस की हवालात में भेज दिए गये।
मिस्टर जौहरी ने कहा- बच्चा बहुत दिनों के बाद पंजे में आए हैं, राज-द्रोह का मुकदमा चलाकर कम से कम 10 साल के लिए अंडमान भेजूंगा।
मिस जोशी- इससे क्या फायदा?
‘क्यों? उसको अपने किए की सजा मिल जाएगी।’
‘लेकिन सोचिए, हमें उसका कितना मूल्य देना पड़ेगा। अभी जिस बात को गिने-गिनाये लोग जानते हैं, वह सारे संसार में फैलेगी और हम कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगें। आप अखबारों में संवाददाताओं की जबान तो नहीं बंद कर सकते।’
‘कुछ भी हो मैं इसे जेल में सड़ाना चाहता हूं। कुछ दिनों के लिए तो चैन की नींद नसीब होगी। बदनामी से डरना ही व्यर्थ है। हम प्रांत के सारे समाचार-पत्रों को अपने सदाचार का राग अलापने के लिए मोल ले सकते हैं। हम प्रत्येक लांछन को झूठ साबित कर सकते हैं, आपटे पर मिथ्या दोषारोपरण का अपराध लगा सकते हैं।’
‘मैं इससे सहज उपाय बतला सकती हूं। आप आपटे को मेरे हाथ में छोड़ दीजिए। मैं उससे मिलूंगी और उन यंत्रों से, जिनका प्रयोग करने में हमारी जाति सिद्धहस्त है, उसके आंतरिक भावों और विचारों की थाह लेकर आपके सामने रख दूंगी। मैं ऐसे प्रमाण खोज निकालना चाहती हूं जिनके उत्तर में उसे मुंह खोलने का साहस न हो, और संसार की सहानुभूति उसके बदले हमारे साथ हो। चारों ओर से यही आवाज आये कि यह कपटी ओर धूर्त था और सरकर ने उसके साथ वही व्यवहार किया है जो होना चाहिए। मुझे विश्वास है कि वह षड्यंत्रकारियों का मुखिया है और मैं इसे सिद्ध कर देना चाहती हूं। मैं उसे जनता की दृष्टि में देवता नहीं बनाना चाहतीं हूं, उसको राक्षस के रूप में दिखाना चाहती हूं।
|