कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 39 प्रेमचन्द की कहानियाँ 39प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्तालीसवाँ भाग
आपटे का मकान गरीबों के एक दूर के मुहल्ले में था। तांगेवाला मकान का पता जानता था। कोई दिक्कत न हुई। मिस जोशी जब मकान के द्वार पर पहुंची तो न जाने क्यों उसका दिल धड़क रहा था। उसने कांपते हुए हाथों से कुंडी खटखटायी। एक अधेड़ औरत ने निकलकर द्वार खोल दिया। मिस जोशी उस घर की सादगी देख दंग रह गयी। एक किनारे चारपाई पड़ी हुई थी, एक टूटी आलमारी में कुछ किताबें चुनी हुई थीं, फर्श पर लिखने का डेस्क था ओर एक रस्सी की अलगनी पर कपड़े लटक रहे थे। कमरे के दूसरे हिस्से में एक लोहे का चूल्हा था और खाने के बरतन पड़े हुए थे। एक लम्बा-तगड़ा आदमी, जो उसी अधेड़ औरत का पति था, बैठा एक टूटे हुए ताले की मरम्मत कर रहा था और एक पांच-छ वर्ष का तेजस्वी बालक आपटे की पीठ पर चढ़ने के लिए उनके गले में हाथ डाल रहा था। आपटे इसी लोहार के साथ उसी घर में रहते थे। समाचार-पत्रों के लेख लिखकर जो कुछ मिलता उसे दे देते और इस भांति गृह-प्रबंध की चिंताओं से छुट्टी पाकर जीवन व्यतीत करते थे।
मिस जोशी को देखकर आपटे जरा चौंके, फिर खड़े होकर उनका स्वागत किया और सोचने लगे कि कहां बैठाऊं। अपनी दरिद्रता पर आज उन्हें जितनी लाज आयी उतनी और कभी न आयी थी। मिस जोशी उनका असमंजस देखकर चारपाई पर बैठ गयी और जरा रुखाई से बोली- मैं बिना बुलाये आपके यहां आने के लिए क्षमा मांगती हूं किंतु काम ऐसा जरूरी था कि मेरे आये बिना पूरा न हो सकता। क्या मैं एक मिनट के लिए आपसे एकांत में मिल सकती हूं।
आपटे ने जगन्नाथ की ओर देख कर कमरे से बाहर चले जाने का इशारा किया। उसकी स्त्री भी बाहर चली गयी। केवल बालक रह गया। वह मिस जोशी की ओर बार-बार उत्सुक आंखों से देखता था। मानों पूछ रहा हो कि तुम आपटे दादा की कौन हो?
मिस जोशी ने चारपाई से उतर कर जमीन पर बैठते हुए कहा- आप कुछ अनुमान कर सकते हैं कि इस वक्त क्यों आयी हूं।
आपटे ने झेंपते हुए कहा- आपकी कृपा के सिवा और क्या कारण हो सकता है?
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