कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 39 प्रेमचन्द की कहानियाँ 39प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्तालीसवाँ भाग
दयाकृष्ण ने टोका- ''नहीं माधुरी, तुम मेरे साथ अन्याय कर रही हो। मेरे मन में कभी ऐसा संदेह नहीं आया। पहले ही दिन मुझे न जाने क्यों, कुछ ऐसा प्रतीत हुआ कि तुम अपनी और बहनों से कुछ पृथक् हो। मैंने तुममें वह शील और संकोच देखा, जो मैंने कुल-वधुओं में देखा है।''
माधुरी ने उसकी आखों में आँखें गड़ाकर कहा- ''तुम झूठ बोलने की कला में इतने निपुण नहीं हो कृष्ण कि एक वेश्या को भुलावा दे सको। मैं न शीलवती हूँ संकोचवती हूँ और न अपनी दूसरी बहनों से अभिन्न हूँ। मैं वेश्या हूँ उतनी ही कलुषित, उतनी ही विलासांध, उतनी ही मायाविनी, जितनी मेरी दूसरी बहनें; बल्कि उनसे कछ ज्यादा। न तुम अन्य पुरुषों की तरह मेरे पास विनोद और वासना-तृप्ति के लिए आए थे। नहीं महीनों आते रहने पर भी तुम यों अलिप्त न रहते। तुमने कभी डींग नहीं मारी, मुझे धन का प्रलोभन नहीं दिया। मैंने भी कभी तुमसे धन की आशा नहीं की। तुमने अपनी वास्तविक स्थिति मुझसे कह दी। फिर भी मैंने तुम्हें एक नहीं, अनेक ऐसे अवसर दिए कि कोई दूसरा आदमी उन्हें न छोड़ता; लेकिन तुम्हें मैं अपने पंजे में न ला सकी। तुम चाहे और जिस इरादे से आए हो, भोग की इच्छा से नहीं आए; अगर मैं तुम्हें इतना नीच इतना हृदयहीन, इतना विलासांध समझती, तो इस तरह तुम्हारे नाज न उठाती; फिर मैं भी तुम्हारे साथ मित्र-भाव रखने लगी। समझ लिया मेरी परीक्षा हो रही है। जब तक इस परीक्षा में सफल न हो जाऊँ, तुम्हंा नहीं पा सकती। तुम जितने सज्जन हो, उतने ही कठोर हो।''
यह कहते हुए माधुरी ने दयाकृष्ण का हाथ पकड़ लिया और अनुराग और समर्पण भरी चितवनों से उसे देखकर बोली- ''सच बताओ कृष्ण, तुम मुझमें क्या देखकर आकर्षित हुए थे। देखो, बहानेवाज़ी न करना। तुम रूप पर मुग्ध होने वाले आदमी नहीं हो, मैं कसम खा सकती हूँ।''
दयाकृष्ण ने संकट में पड़कर कहा- ''रूप इतनी तुच्छ वस्तु नहीं है माधुरी। वह मन का आईना है।''
''यहाँ मुझसे रूपवान स्त्रियों की कमी नहीं है।''
''यह तो अपनी-अपनी निगाह है। मेरे पूर्व संस्कार रहे होंगे।''
माधुरी ने भवें सिकोड़ कर कहा- ''तुम फिर झूठ वोल रहे हो, चेहरा कहे देता है। दयाकृष्ण ने परास्त होकर पूछा- ''पूछ कर क्या करोगी माधुरी? मैं डरता हूं कहीं तुम मुझसे घृणा न करने लगो। संभव है, तुम मेरा जो रूप देख रही हो, वह मेरा असली रूप न हो।''
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