कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 39 प्रेमचन्द की कहानियाँ 39प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्तालीसवाँ भाग
मृत सिद्धेश्वरीराय के एक लड़की तपेश्वरी थी। अपने जीवन-काल में वे उसका विवाह कर चुके थे। उसे कुछ मालूम ही न था कि बाप ने क्या छोड़ा और किसने लिया। क्रिया-कर्म अच्छी तरह हो गया; वह इसी में खुश थी। षोडशी में आयी थी। फिर ससुराल चली गयी। 30 वर्ष हो गये, न किसी ने बुलाया, न वह मौके आयी। ससुराल की दशा भी अच्छी न थी। पति का देहांत हो चुका था। लड़के भी अल्प वेतन पर नौकर थे। जागेश्वर ने अपनी फूफी को उभारना शुरू किया। वह उसी को मुद्दई बनाना चाहता था।
तपेश्वरी ने कहा– बेटा, मुझे भगवान ने जो दिया, है उसी में मगन हूँ। मुझे जगह-जमीन न चाहिए। मेरे पास अदालत करने को धन नहीं है।
जागे०– रुपये मैं लगाऊँगा, तुम खाली दावा कर दो।
तपेश्वरी– भैया तुम्हें खड़ा कर किसी काम का न रखेंगे।
जागे०– यह नहीं देखा जाता कि वे जायदाद ले कर मजे उड़ावें और हम मुँह ताकें। मैं अदालत का खर्च दे दूँगा। इस जमीन के पीछे बिक जाऊँगा पर उनका गला न छोड़ूँगा।
तपेश्वरी– अगर जमीन मिल भी गयी तो तुम अपने रुपयों के एवज में ले लोगे, मेरे हाथ क्या लगेगा? मैं भाई से क्यों बुरी बनूँ?
जागे०– जमीन आप ले लीजिएगा, मैं केवल चाचा साहब का घमंड तोड़ना चाहता हूँ।
तपेश्वरी०– अच्छा जाओ, मेरी तरफ से दावा कर दो।
जागेश्वर ने सोचा, जब चाचा साहब की मुट्ठी से जमीन निकल जायेगी तब मैं दस-पाँच रुपये साल पर इनसे ले लूँगा। इन्हें अभी कौड़ी नहीं मिलती। जो कुछ मिलेगा, उसी को बहुत समझेंगी। दूसरे दिन दावा कर दिया। मुंसिफ के इजलास में मुकदमा पेश हुआ। विश्वेश्वरदास ने सिद्ध किया कि तपेश्वरी सिद्धेश्वरी की कन्या ही नहीं है।
गाँव के आदमियों पर विश्वेश्वर का दबाव था। सब लोग उनसे रुपये-पैसे उधार ले जाते थे। मामले-मुकदमें में उनसे सलाह लेते। सबने अदालत में बयान किया कि हम लोगों ने कभी तपेश्वरी को नहीं देखा!
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