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प्रेमचन्द की कहानियाँ 40

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9801
आईएसबीएन :9781613015384

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चालीसवाँ भाग


थानेदार चला गया, तो चौधरी ने अपने साथी से कहा- देखा कल्लू, थानेदार कितना बिगड़ रहा था? सरकार चाहती है कि हम लोग खूब शराब पीयें और कोई हमें समझाने न पाये। शराब का पैसा भी तो सरकार ही में जाता है?

कल्लू ने दार्शनिक भाव से कहा- हर एक बहाने से पैसा खींचते हैं सब।

चौधरी- तो फिर क्या सलाह है? है तो बुरी चीज?

कल्लू- बहुत बुरी चीज है भैया, महात्मा जी का हुक्म है, तो छोड़ ही देना चाहिए।

चौधरी- अच्छा तो यह लो, आज से अगर पिये तो दोगला। यह कहते हुए चौधरी ने बोतल जमीन पर पटक दी। आधी बोतल शराब जमीन पर बह कर सूख गयी।

जयराम को शायद जिंदगी में कभी इतनी खुशी न हुई थी। जोर-जोर से तालियाँ बजा कर उछल पड़े। उसी वक्त दोनों ताड़ी पीनेवालों मे भी ‘महात्मा जी की जय’ पुकारी और अपनी हाँड़ी जमीन पर पटक दी। एक स्वयंसेवक ने लपक कर फूलों की माला ली और चारों आदमियों के गले में डाल दी।

सड़क की पटरी पर कई नशेबाज बैठे इन चारों आदमियों की तरफ उस दुर्बल भक्ति से ताक रहे थे, जो पुरुषार्थहीन मनुष्यों का लक्षण है। वहाँ एक भी ऐसा व्यक्ति न था, जो अंगरेजों की मांस-मदिरा या ताड़ी को जिंदगी के लिए अनिवार्य समझता हो और उसके बगैर जिंदगी की कल्पना भी न कर सके। सभी लोग नशे को दूषित समझते थे, केवल दुर्बलेन्द्रिय होने के कारण नित्य आ कर पी जाते थे। चौधरी जैसे घाघ पियक्कड़ को बोतल पटकते देख कर उनकी आँखें खुल गयीं एक मरियल दाढ़ीवाले आदमी ने आकर चौधरी की पीठ ठोंकी। चौधरी ने उसे पीछे ढकेल कर कहा- पीठ क्या ठोंकते हो जी, जा कर अपनी बोतल पटक दो।

दाढ़ीवाले ने कहा- आज और पी लेने दो चौधरी! अल्लाह जानता है, कल से इधर भूलकर भी न आऊँगा।

चौधरी- जितनी बची हो, उसके पैसे हमसे ले लो। घर जाकर बच्चों को मिठाई खिला देना।

दाढ़ीवाले ने जा कर बोतल पटक दी और बोला- लो, तुम भी क्या कहोगे? अब तो हुए खुश!

चौधरी- अब तो न पीयोगे कभी?

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