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प्रेमचन्द की कहानियाँ 40

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9801
आईएसबीएन :9781613015384

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चालीसवाँ भाग


एकाएक थानेदार और चार-पाँच काँस्टेबल आ खड़े हुए। थानेदार ने चौधरी से पूछा- यह लोग तुमको धमका रहे हैं?

चौधरी ने खड़े होकर कहा- नहीं हुजूर, यह तो हमें समझा रहे हैं। कैसे प्रेम से समझा रहै हैं कि वाह!

थानेदार ने जयराम से कहा- अगर यहाँ फिसाद हो जाए, तो आप जिम्मेदार होंगे?

जयराम- मैं उस वक्त तक जिम्मेदार हूँ, जब तक आप न रहें।

‘आपका मतलब है कि मैं फिसाद कराने आया हूँ?’

‘मैं यह नहीं कहता; लेकिन आप आये हैं, तो अँगरेजी साम्राज्य की अतुल शक्ति का परिचय जरूर ही दीजिएगा। जनता में उत्तेजना फैलेगी। तब आप पिल पड़ेंगे और दस-बीस आदमियों को मार गिरायेंगे। वही सब जगह होता है और यहाँ भी होगा।’

सब इन्सपेक्टर ने ओठ चबाकर कहा- मैं आपसे कहता हूँ, यहाँ से चले जाइए, वरना मुझे जाब्ते की कार्रवाई करनी पड़ेगी।

जयराम ने अविचल भाव से कहा- और मैं आपसे कहता हूँ कि आप मुझे अपना काम करने दीजिए। मेरे बहुत-से भाई यहाँ जमा हैं और मुझे उनसे बातचीत करने का उतना ही हक है जितना आपको।

इस वक्त तक सैकड़ों दर्शक जमा हो गये थे। दारोगा ने अफसरों से पूछे बगैर और कोई कार्रवाई करना उचित न समझा। अकड़ते हुए दूकान पर गये और कुरसी पर पाँव रखकर बोले- ये लोग तो मानने वाले नहीं हैं।

दूकानदार ने गिड़गिड़ाकर कहा- हुजूर, मेरी तो बधिया बैठ जाएगी।

दारोगा-दो-चार गुण्डे बुलाकर भगा क्यों नहीं देते? मैं कुछ न बोलूँगा। हाँ, जरा एक बोतल अच्छी-सी भेज देना। कल न जाने क्या भेज दिया, कुछ मजा ही नहीं आया।

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