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प्रेमचन्द की कहानियाँ 40

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9801
आईएसबीएन :9781613015384

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चालीसवाँ भाग


जयराम ने दर्शकों से कहा- आप लोग यहाँ भीड़ न लगायें और न किसी को भला-बुरा कहें। मगर दर्शकों का समूह बढ़ता जाता था। अभी तक चार-पाँच आदमी बे-गम बैठे हुए कुल्हड़ चढ़ा रहे थे। एक मनचले आदमी ने जा कर उस बोतल को उठा लिया, जो उनके बीच में रखी हुई थी और उसे पटकना चाहता था कि चारों शराबी उठ खड़े हुए और उसे पीटने लगे। जयराम और उसके स्वयं सेवक तुरंत वहाँ पहुँच गये और उसे बचाने की चेष्टा करने लगे कि चारों उसे छोड़ कर जयराम की तरफ लपके। दर्शकों ने देखा कि जयराम पर मार पड़ा चाहती है, तो कई आदमी झल्ला कर उन चारों शराबियों पर टूट पड़े। लातें, घूँसे और डंडे चलाने लगे। जयराम को इसका कुछ अवसर न मिलता था कि किसी को समझाये। दोनों हाथ फैलाये उन चारों के वारों से बच रहा था; वह चारों भी आपे से बाहर होकर दर्शकों पर डंडे चला रहे थे। जयराम दोनों तरफ से मार खाता था। शराबियों के वार भी उस पर पड़ते थे, तमाशाईयों के वार भी उसी पर पड़ते थे; पर वह उनके बीच से हटता न था। अगर वह इस वक्त अपनी जान बचा कर हट जाता, तो शराबियों की खैरियत न थी। इसका दोष काँग्रेस पर पड़ता। वह काँग्रेस को इस आक्षेप से बचाने के लिए अपने प्राण देने पर तैयार था। मिसेज सक्सेना को अपने ऊपर हँसने का मौका वह न देना चाहता था। आखिर उसके सिर पर डंडा इस जोर से पड़ा कि वह सिर पकड़ कर बैठ गया। आँखों के के सामने तितलियाँ उड़ने लगी। फिर उसे होश न रहा।

जयराम सारी रात बेहोश पड़ा रहा। दूसरे दिन सुबह को जब उसे होश आया, तो सारी देह में पीड़ा हो रही थी और कमजोरी इतनी थी कि रह-रह कर जी डूबता जाता था। एकाएक सिरहाने की तरफ आँख उठ गयी, तो मिसेज सक्सेना बैठी नजर आयीं। उन्हें देखते ही स्वयंसेवकों के मना करने पर भी उठ बैठा। दर्द और कमजोरी दोनो जैसे गायब हो गयीं। एक-एक अंग में स्फूर्ति दौड़ गयी। मिसेज सक्सेना ने उसके सिर पर हाथ रख कर कहा- आपको बड़ी चोट आयी। इसका सारा दोष मुझ पर है।

जयराम ने भक्तिमय कृतज्ञता के भाव से देख कर कहा- चोट तो ऐसी ज्यादा न थी, इन लोगों ने बरबस पट्टी-सट्टी बाँध कर जख्मी बना दिया।

मिसेज सक्सेना ने ग्लानित हो कर कहा- मुझे आपको न जाने देना चाहिए था।

जयराम- आपका वहाँ जाना उचित न था। मैं आपसे अब भी यही अनुरोध करूँगा कि उस तरफ न जाइएगा।

मिसेज सक्सेना ने जैसे उन बाधाओं पर हँस कर कहा- वाह! मुझे आज से वहाँ पिकेट करने की आज्ञा मिल गयी है।

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