कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 40 प्रेमचन्द की कहानियाँ 40प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चालीसवाँ भाग
मैं अपना सा मुँह ले कर रह गया।
जून में विवाह हो गया। गोपा ने बहुत कुछ दिया और अपनी हैसियत से बहुत ज्यादा दिया; लेकिन फिर भी, उसे सन्तोष न था। आज सुन्नी के पिता होते तो न जाने क्या करते। बराबर रोती रही।
जाड़ों में मैं फिर दिल्ली गया। मैंने समझा था कि अब गोपा सुखी होगी। लड़की का घर और वर दोनों आदर्श हैं। गोपा को इसके सिवा और क्या चाहिए; लेकिन सुख उसके भाग्य में ही न था। ।
अभी कपड़े भी न उतारने पाया था कि उसने अपना दुखड़ा शुरू कर दिया- भैया, घर द्वार सब अच्छा है, सास ससुर भी अच्छे हैं, लेकिन जमाई निकम्मा निकला। सुन्नी बेचारी रो-रोकर दिन काट रही है। तुम उसे देखो, तो पहचान न सको। उसकी परछाई मात्र रह गयी है। अभी कई दिन हुए, आयी हुई थी, उसकी दशा देखकर छाती फटती थी। जैसे जीवन में अपना पथ खो बैठी हो। न तन बदन की सुध है, न कपड़े-लत्ते की। मेरी सुन्नी की दुर्गत होगी, यह तो स्वप्न में भी न सोचा था। बिल्कुल गुम सुम हो गयी है। कितना पूछा- बेटी, तुझसे वह क्यों नहीं बोलता, किस बात पर नाराज़ है; लेकिन कुछ जवाब ही नहीं देती। बस, आँखों से आँसू बहते हैं, मेरी सुन्नी कुएँ में गिर गयी।
मैंने कहा- तुमने उसके घर वालों से पता नहीं लगाया?
'लगाया क्यों नहीं भैया, सब हाल मालूम हो गया। लौंडा चाहता है, मैं चाहे जिस राह जाऊँ, सन्नी मेरी पूजा करती रहे। सुन्नी भला इसे क्यों सहने लगी? उसे तो तुम जानते हो, कितनी अभिमानी है। वह उन स्त्रियों में नहीं है, जो पति को देवता समझती है और उसका दुर्व्यवहार सहती रहती है। उसने सदैव दुलार और प्यार पाया है। बाप भी उस पर जान देता था। मैं भी आँख की पुतली समझती थी। पति मिला छैला, जो आधी-आधी रात तक मारा-मारा फिरता है। दोनों में क्या बात हुई, यह कौन जान सकता है, लेकिन दोनों में कोई गाँठ पड़ गयी है। न वह सुन्नी की परवाह करता है, न सुन्नी उसकी परवाह करती है; मगर वह तो अपने रंग में मस्त है, सुन्नी प्राण दिये देती है! उसके लिए सुन्नी की जगह मुन्नी है, सुन्नी के लिए उसकी अपेक्षा है-और रुदन है।'
मैंने कहा- लेकिन तुमने सुन्नी को समझाया नहीं? उस लौंडे का क्या बिगड़ेगा? इसकी तो ज़िन्दगी खराब हो जायगी।
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