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प्रेमचन्द की कहानियाँ 42

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9803
आईएसबीएन :9781613015407

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बयालीसवाँ भाग


यह कहते-कहते लार्ड हरबर्ट चौंक पड़ा, क्योंकि उसने राबिन को बाहर से आते देखा। उसका रंग फ़क्क हो गया और इधर-उधर बगलें झाँकने लगा। मगर मिस लैला ने कुत्ते को गोद में ले लिया और बोली- ''तू अब तक कहाँ था? यह नाक में मिट्टी कहाँ लगाई। आ, तेरी नाक साफ़ कर दूँ।'' यह कहकर उसने अपना रेशमी रूमाल निकाल लिया और उससे राबिन के नथुने साफ़ करने लगी। फिर लार्ड हरबर्ट से बोली- ''क्यों, आप इस कुत्ते को पसंद करते हैं या नहीं? बारटन इसे लिए जाते थे, मगर मैंने रोक लिया। देखिए, कैसी प्यारी सूरत है। आप इससे खुश हैं?''

हरबर्ट (खौफ़ज़दगी को जप्त करते हुए)- ''जी हाँ, बेशक-बेशक। जी हाँ, आप सही कहती हैं।''

लैला- ''आप इस ख्याल को कहाँ तक सही समझते हैं कि हर एक इंसान की शराफ़त का अंदाज़ा उस से किया जा सकता है कि कुत्ते उससे किस क़दर मानूस (निर्भय) हो जाते हैं?''

हरबर्ट (साबिक की तरह जप्त करते हुए)- ''आप का ख्याल सही है। बेशक यह कुत्ता अब मिस्टर बारटन के आने तक यहीं रहेगा, ग़ालेबन अस्तबल इसके लिए बहुत अच्छी जगह होगी।''

लैला - ''यह आप क्या कहते हैं? मेरा प्यारा राबिन अस्तबल के कुत्तों में नहीं रहेगा, मैं उसे हमेशा अपने साथ रखूँगी। क्यों, आपका चेहरा उदास क्यों हो गया?''

हरबर्ट- ''कुछ नहीं। मुझे मकान पर एक जरूरी काम करना है। अभी-अभी ख्याल आ गया। माफ़ कीजिएगा, मैं फिर जल्द हाज़िरे-खिदमत होऊँगा।''

यह कहकर लार्ड साहब उठे। राबिन उनकी तरफ़ घूरकर खो-खो करने लगा। इस गुरगुराहट को सुनते ही हरबर्ट के होश उड़ गए। अपनी किस्मत को और इस मनहूस कुत्ते को कोसते हुए आप फ़ौरन बाहर निकल आए। अहाते में लैला के खानसामे से मुलाक़ात हो गई। उनका चेहरा देखते ही वह ताड़ गया कि इस वक्त हज़रत के होश उड़े हुए हैं। कुत्ते से यकीनी पाला पड़ा है। हमदर्द बनकर लगे कहने- ''लार्ड हरबर्ट साहब। आप इस वक्त कहाँ तशरीफ़ लिए जाते हैं। आज कम्बख्त राबिन ने आप को बहुत दिक किया। अगर ठूँठ पर न जा बैठते तो वह जरूर आप को काट लेता।''

हरबर्ट- ''मिस्टर काक सच कहते हो। तुम तो मेरे पुराने रफ़ीक़ (दोस्त) हो।''

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